________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्रं / .. बहुएँ इच्छानुसार परस्पर बातें करने लगीं। उनका ससर भी कान लगाकर उनकी बातें सुनने लगा। प्रथम चन्द्रमती नामकी बड़ी बहू बोली,-“हे सखियो! अब अपने अपने मनकी बातें खुलकर कहो-सुनो।" यह सुन शीलमतीने कहा,"कहीं कोई और हमारी बातोंको कान लगाये सुनता न हो, इसलिये मनकी बातें करनी उचित नहीं है / " यह सुन, दूसरी बोली, "हे शीलमती ! तुम व्यर्थ ही भय न करो, यहाँ तो कोई नहीं है / " तब सबसे छोटी बहूने कहा, "पहले तुम लोग अपनी-अपनी बातें कह जाओ, इसके बाद जब मेरी बारी आयेगी, तब मैं भी कह सुनाऊँगी।" यह सुन, पहली बड़ी बहुने कहा,- "अच्छी तरह पकायी हुई गरमागरम खिचड़ी और उसमें ताज़ा घी पड़ा हुआ हो, तो मुझे बहुत अच्छा मालूम होता है। इसके सिवा दही अथवा घीके साथ-साथ रबड़ी हो और उसके सर आमके अंचार हो, तो मुझे बहुत अच्छे मालूम होते हैं।" इसके बाय कीर्तिमतीने कहा, . "मुझे खाँड़ और घीके साथ साथ खीर बहुत अच्छी लगती है / अथवा घीके साथ-साथ दाल-भात और उनके साथ कड़वा // और खट्टा साग मुझे बड़ा अच्छा लगता है / " तब तीसरी शान्तिमती बोली,- "मेरी पसंद सुनो। उमदा लड्डु, और पक्वान मुझे बहुत पसंद आते हैं। साथही ठोर और पूरियाँ मुझे बहुत रुचती हैं / " इसके बाद चौथी शीलमतीने कहा,- " मैं तो अन्नके विषयमें ऐस। कोई ख़ास पसन्द नहीं रखती;क्योंकि लोग कहा करते हैं, कि पेट केव अन्न चाहता है- वह खास करके पूरी, मिठाई आदि नहीं मांगता / इस लिये मेरी तो यही इच्छा रहती है, कि उत्तम सुगन्धित जलसे स्ना कर, शरीरमें चन्दनादिका लेपन कर; अच्छे-भले वस्त्र पहन तथा उस अलंकारोंसे शरीरका शृङ्गार-सम्पादन कर, ससुर, जेठ तथा स्वामी भोजन करा, घरके अन्य मनुष्योंको भी सन्तुष्ट कर तथा दीन , को दान दे, अन्तमें बाकी बचा हुआ जो कुछ भोजन मिदमातही खा लिया जाये। इसीसे मेरी इच्छा पूरी हो जाती है / " जब शील P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust