Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 390
________________ षष्ठ प्रस्ताव / "वापी वप्र विहार वर्ण वनिता वाग्मी वनं वाटिका, .. वैद्य ब्राह्मण वादि वेश्म विबुधा वाचंयमा वल्लकी। विद्या वीर विवेक वित्त विनया वेश्या वणिक् वाहिनी, वस्त्र वारण वाजि वेसरवरं राज्यं च वै शोभते // 1 // " अर्थात्--"जिस राज्यमें बावली, वप्र (किला), विहार (चैत्य) . वर्ण (चारों वर्णके लोग), वनिता, वाचाल मनुष्य, वन, बाग-बगीचा, वैद्य, ब्राह्मण, वादी, वेश्म (हवेली), विबुध (देव तथा पण्डित), वाचंयम (साधु), वल्लकी (वीणा),विद्या वीर, विवेक, वित्त, विनय वेश्या, वणिक्, वाहिनी (सेना), वस्त्र, वारण (हाथी), वाजि (अश्व) और वेसर (खच्चर) इतनी वकारादि श्रेष्ठ वस्तुएँ होती हैं, वही शोभा पाता है।" -- - उस पुरमें जितारि नामक राजा साम्राज्यका सञ्चालन कर रहे थे। की रानीका नाम सुलोचना था। उस नगरमें महीपाल नामका एक क्षत्रिय रहता था। वह सदा खेतीका धन्धा करता था / उसकी भार्याका नाम धारिणी था। उसके गर्भसे उत्पन्न धरनीधर, कीर्तिधर, पृथ्वीपाल और शूरपाल नामके चार पुत्र थे। वे चारों क्रमश: बालकपनकी अवस्था पार कर युवावस्थाको प्राप्त हुए / तब उनकी शादी क्रमसे चन्द्रमती, कीर्तिमती, शान्तिमती और शीलमती नामकी न्याओंके साथ कर दी गयी / एक दिन वर्षाऋतुमें महीपालके वे चारों पिछली रातको अपने घरसे निकल कर खेतमें काम करने / उनके-पीछे-पीछे उनकी स्त्रियाँ भी वहाँ जानेके लिये घरसे बाहर कलीं। वे चली जा रही थीं, इसी समय बड़े जोरकी गरज-उनकके पानी बरसने लगा। यह देख, वे स्त्रियाँ पासहीके एक बड़के पेड़ मे जाकर उसीके सहारे खड़ी हो रहीं। उनके पीछे-पीछे उनका ससुर किया की तरफ़ चला। वह भी वर्षाके जलको निवारण करनेके लिये की दूसरी तरफ़ गुप्त रीतिसे खड़ा हो रहा। उस समय पाने ससुरके आनेका हाल जाने बिना ही, वे चारों गुरुधिरसे पति को _ गुरुके पास आय Jun Gun Aaradhak Trust

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