Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 392
________________ anantarawww . षष्ठ प्रस्ताव / मतीने अपनी यह इच्छा प्रकट की, तब उसे सुनकर दूसरी बोली,"तेरी इच्छा तो ऐसी है, कि जो कभी पार न लगे, क्योंकि किसानके घरमें वैसा अच्छा भोजनही मिळना दुर्लभ है, फिर उत्तम वस्त्रों और अलङ्कारोंकी तो बात ही क्या है ?" उस की बात पूरी ही हुई थी, कि वृष्टि भी बन्द हो गयी और वे पारों स्त्रियाँ खेतमें चली गयीं। ____ इधर महीपाल उन चारों की बात सुन, अपने मनमें विचार करने लगा,-"ओह ! मेरी चारों बहुओंमें तीन तो केवल खानेहीके लिये हायहाय करती हैं, इससे मालूम होता है, कि इनकी सास इनकी इच्छाके अनुसार खाना नहीं देती। इसलिये आज घर जाकर अपनी स्त्रीको डपटू गा और तीनों बहुओंकी इच्छा पूर्ण करूँगा। साथ ही असम्मवित पात-कहनेवाली छोटी बहू की, जो ही मिल जाये, वही खा लेनेकी इच्छा पूर्ण करूँगा।" यही सोचकर वह घर आया और उसने अपनी स्त्रीसे ओंकी बातें कह सुनायीं। उसने कहा, "हे प्रिये ! आजसे तुम तीनों बड़ी बहुओंको उनके इच्छानुसार भोजन दिया करना और छोटी बहूको जैसा-तैसा खराब अन्न खानेको देना।" यह कह, वह भी खेतमें चला गया। इसके बाद खेतका काम ख़तम कर, भोजनके समय सारा परिवार घर आया / धारिणी सब तरहका भोजन तैयार रखे हुए थी। उसने पहले अपने स्वामी और चारों पुत्रोंको खिलाकर, पतिके बतलाये जान्नुसार भोजन बहुओंके सामने लाकर रखा। उस समय वे चारों स्मित होकर परस्पर एक दूसरीका मुंह देखकर विचार करने लगीं,याज न जाने कैसे हमें इच्छित भोजन मिल गया ; पर छोटी बहूको सा खराब खाना क्यों मिला ? इसका क्या कारण है ? ऐसा विचार दी हुई वे खा-पीकर उठ गयीं। शीलमतीने अपने मनमें सोचा,मैंने तो कुछ बिगाड़ा नहीं था, फिर सासने ऐसा पंक्ति भेद क्यों किया : कहते हैं, कि क्तिभेदी वृथापाकी, निद्राच्छेदी निरर्थकम् / .. .. धर्मद्वेषी कथाभूगी, पंचैते अन्त्यजाः स्मृताः॥१॥" - P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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