________________ श्रीशान्तिाथ चरित्र। अङ्गीकार करनेके बाद उन्होंने बड़ी उग्र तपस्या की। क्रमसे सुलस सब कर्मों का क्षय कर, उसी भवमें केवल-ज्ञानको प्राप्त हो, मोक्षको प्राप्त हो गया।" - इस प्रकार पाँचवें अणुव्रतके विषयमें भगवान्-श्रीशान्तिनाथने राजा चक्रायुधको सुलसकी कथा कह सुनायी। सुलस-कथा समाप्त / . फिर स्वामीने कहा,– “हे राजन् ! मैंने तुम्हें पाँचवें अणुव्रतका हाल सुना दिया। अब मैं तुम्हें दिगपरिमाणव्रत, भोगोपभोग-परिमाण-व्रत और अनर्थ-दण्ड त्याग-व्रत इन तीनों गुणवतोंका वर्णन सुनाता हूँ, उसे सुनो / पूर्वादि चारों दिशाओं और ऊर्द्ध तथा अधो दिशामें गमन करनेका परिणाम करना ही दिग्वत नामका पहला गुणव्रत कहलाता है। दिशाओंका प्रमाण नहीं करनेसे जीव अनेक प्रकारके दुःख पाता है। स्वयंभूदेव नामक वणिकने वैसा नहीं किया, इसीलिये म्लेच्छ-देशमें जाकर उसने बड़ा दुःख उठाया था।” यह सुन, राजाने पूछा,-"हे स्वामी ! उसका हाल कह सुनाइये / " तब प्रभुने कहा;- . स्वयंभूदेवकी-कथा _ इसी भरतक्षेत्रमें गंगातट नामका नगर है। वहाँ सुदन्त नाम एक राजा रहते थे। राजा अपने नगरमेंही रहते और सर्वत्र दूत भे कर अपने अधीन देशभरका समाचार मँगवाया करते थे। उसी नगर स्वयंभूदेव नामक एक किसान रहता था। वह खेतीका काम कर शा.पर उसके जीमें सन्तोष नहीं था / एक दिन पिछली रातकोनी कर उसने सोचा,-'यहाँ रहनेसे मुझे जैसा चाहिथे, वैसा ला होता, इसलिये कहीं और जाकर खूब धन पैदा करकी में मनोरथ सफल करूँ, तो ठीक हो।" ऐसा वि .in" र कर, घर बनज P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust