________________ wwwwwwwwimmun षष्ठ प्रस्ताव। व्यौपारके लिये सामान लेकर उत्तरापथकी ओर चला / क्रमसे वह लक्ष्मीशीर्षक नामक नगरमें आ पहुँचा / उस नगरमें प्रवेश कर, उसने अपना व्यापार फैलाया। उसमें उसे भाग्यानुसार लाभ भी हुआ। वहाँसे वह धनकी आशासे और-और नगरोंमें भी गया, पर कहीं भाग्यसे अधिक नहीं मिला / तो भी उसके मनमें यह बात नहीं आयो, कि. "भाग्याधिकं नैव नराधिपोऽपि, ददाति वित्तं चिरसेवकेभ्यः। निरन्तरं वर्पित वारिधार-स्तथापि पत्रत्रितयं पलाशें // 1 // " . अर्थात्--"राजा अपने सदाके सेवकों को भी उनके भाग्यसे अधिक धन नहीं दे सकता; वर्षाऋतुमें निरन्तर जलधारा पड़ती रहने पर भी ढाकके वही तीन पात होते हैं।" ... इस बातको सोचे बिना वह भाग्यसे अधिक फलकी इच्छासे किसी दूसरे नगर में गया / वहाँ कितने ही बनियोंको देखकर उसने पूछा,"हे व्यापारियो ! तुम लोग किस देशसे आये हो ?" उन्होंने कहा,"हम लोग व्यापार करनेके लिये चिलात-देशमें गये हुए थे और वहाँसे खूब मालमता पैदा कर यहाँ आये हुए हैं।" यह सुन, स्वयंभूदेवने / बहुतसा किराना माल ले, खाने-पीनेकी सामग्री तथा बहुतसे आद. मियोंके साथ, उस देशकी ओर प्रस्थान किया। क्रमसे चलते हुए महातप्त बालुकामय मार्गको पारकर, अति शीतल हिममार्गको भी लांघकर, ने अति विषम पार्वतीय मार्गमें आ पहुँचा। लोभके फन्देमें फंसा हुआ दमी क्या-क्या नहीं करता? इसके बाद वह चिलात-देशके पास पहुँच इतनेमें वहाँके म्लेच्छ-राजाका जो शत्रु-राजा था, उसके सैनिकोंसे की मुलाकात हुई। उस शत्रु-राजाने जब सुना, कि यह आदमी त-देशमें जा रहा है, तब उसका सारा समान लूट लिया और मैन ने नगरकी ओर लौट जानेको मज़बूर किया। परन्तु स्वयंभूदेव किया की तरह उन लोगोंकी नज़र बचाकर गुप्त रीतिसे चिलातदे / वहाँ भीलोंके लड़कोंने उसे पकड़कर उसके सारे शरीरको रुधिरसे पोदिया। इसके बाद उन दुष्टोंने उसे एक जंगल में ले P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust