________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / प्रकट करने लगे। तब वह बेचारा किसान बड़ी पीड़ा पानेके कारण पश्चात्ताप करता हुआ प्रणाम-पूर्वक उससे क्षमा प्रार्थना करने लगा। इससे उन्हें दया हो आयी और उन्होंने कोपका त्यागकर, उसके शरीरकी / पीड़ा दूर कर दी। इसके बाद वे अपने स्थान पर चले गये और किसान रोगके चङ्गलसे छुटकारा पा गया। . ४-उस सयय उसने अपने मनमें सोचा,—“हे जीव ! तूने चारों तरहके अनर्थ-दण्ड कर लिये और उनसे उत्पन्न होनेवाले दुःख भी भोगे। शास्त्रमें कहा है, कि करोड़ों कल्पमें भी किये हुए कर्मका क्षय नहीं होता / प्राणियोंको अपने किये हुए शुभाशुभ कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। ऐसा विचार कर, शुभ भावना करते हुए वह समृद्धदत्त एक जैनमुनिके पास आया और उनका उपदेश सुन, प्रतिबोध पा, सुश्रावक हो गया। इसके बाद शुद्ध धर्मकी आराधना करते हुए, अन्तमें मृत्युको प्राप्त होकर सौधर्म देवलोकमें जाकर वह देव हो गया ! देवकी आयु पूरी होनेपर वहाँसे च्युत होकर वह मनुष्य-योनिमें उत्तमी कुलमें जन्म लेगा और क्रमशः मोक्षसुखको प्राप्त करेगा। समृद्धदत्त की यह कथा सुनकर तत्वज्ञानियोंको चाहिये, कि अनर्थ-दण्डका अवश्य मेव त्याग कर दें। समृद्धिदत्त कथा समाप्त। प्रभुने कहा,-"अब मैं शिक्षा व्रतोंकी बात कहता हूँ। इनमें पक्की सामायिक व्रतहै / इस व्रतकी आराधना करनेसे त्रस और स्थावर जीव के विषयमें समानताका भाव उत्पन्न होता है। इसलिये सामान प्रति दिन करना चाहिये। सामायिक करते समय श्रावक भी उनका देरके लिये साधुका सा हो जाता है। निश्चल चित्तसे साम करनेसे भव्य जीवोंको सिंह श्रावककी तरह सुख होता है।" प्रभुको यह बात सुन, सभांमें बैठे हुए मनुष्योंने पूछा, बारा वह सिंह श्रावक कौन था ?" इसके उत्तरमें श्री शालिममइन, हले ने जो कथा कही, वह इस प्रकार है:- कंधकों तथा साधओंको P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Truse