________________ षष्ठ प्रस्ताव। .. 3000000000000000000000 सिंह श्रावककी कथा। HWO000000000000000000000OOR . इसी भरतक्षेत्रमें रमणीय नामक नगरमें शूर-वीरोंमें शिरोमणि हेमाङ्गद नामके राजा थे। उनके हेमश्री नामकी रानी थी। उसी नगरमें जिनदेव नामक एक श्रावक रहता था। उसकी स्त्रीका नाम जिनदासी था। उसीके गर्भसे उत्पन्न सिंह नामका एक पुत्र भी उसके था। सिंह सदा सामायिक ग्रहण कर, दोनों वक्त प्रतिक्रमण करता था। एक दिन वह सिंह काफ़िलेके साथ द्रव्य उपार्जन करनेके लिये किराना माल ले, उत्तरापथकी ओर चला / मार्गमें एक जङ्गलमें नदीके तीरपर उस काफ़िलेका पड़ाव पड़ा। वहाँ भी सिंहने सामायिक ग्रहण या / उस समय वहाँ मच्छरोंका ज़ोर नज़र आया। उनका उपद्रव र करनेके लिये काफिलेके लोगोंने खूब धुआँ किया। इससे व्याकुल होकर सब मच्छर सिंहके पास आये। महाप्राण सिंहने मेरुकी तरह अचल भावसे उन मच्छरोंका उपद्रव सहन किया। इसके बाद तुरतही दक्खिनी हवा चलनेसे वे मच्छर जाते रहे / सिंहका उपसर्ग आपसे आप. दर हो गया। सामायिकका समय पूरा होनेपर सिंहने सामायिकका सारण किया ; पर मच्छरोंके डंकसे उसके शरीरमें सूजन हो गया था H दर्द पैदा हो गया था। वह दर्द कई दिनोंमें दूर हुआ और का शरीर स्वस्थ हो गया। इसके बाद वह व्यापारके लिये वसन्त MANनामक नगरमें गया। वहाँ किराना बैंचकर उसने बहुत लाभ वहाँसे लौटकर घर आनेपर शुभध्यानमें तत्पर हो, सातों धर्मनसन व्ययकर, वह गृहस्थ धर्मका पालन करने लगा। अन्तमें किया - अनशनद्वारा मरण प्राप्तकर, वह स्वर्गमें गया। वहाँसे मोक्षलाभ करेगा। गरुके "कस आयत श्रावक-कथा समाप्त / 'P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust