________________ षष्ठ प्रस्ताव। उसकी इच्छा नहीं करता।" यह सुन, उसका दृढ़ निश्चय जान, उसका मित्र घर चला गया। इसके बाद जब व्रत पूरा हो गया, तब वह दूसरे दिन उस काफिलेमें गया। उस समय उसने देखा, कि सब किराना ज्योंका त्यों रखा हुआ है, किसीने लिया नहीं है। अब तो उसने सब माल खरीद लिया और बाजार में बेंचकर खूब फायदा उठाया। उस समय गङ्गादत्तने सोचा,-"अवश्य ही यह धर्मका ही प्रभाव है। इसलिये मुझे यह सारा धन देवगृह आदि धर्म-स्थानोंमें लगादेना चाहिये।" ऐसा विचार कर, उसने विविध प्रकारसे जिनेश्वरकी पूजा की और श्रीसंघकी भक्ति-पूर्वक वस्त्र, भोजन और ताम्बूल आदि देकर खब सम्मानित किया। इस प्रकार धर्मके विषयमें उद्योग कर, अन्तमें अनशन करके मृत्युको प्राप्त हो, वह स्वर्ग चला गया। वहाँसे आकर वह क्रमसे मोक्ष प्राप्त करेगा।" गंगदत्त-कथा समाप्त / प्रभुने कहा,---“हे चक्रायुध राजा ! तुम्हें मैंने दृष्टान्त सहित देशाकाशिक व्रत की व्याख्या सुनायी। अब मैं दृष्टान्त सहित पौषध. तकी बात सुनाता हूँ। यह पौषधव्रत, पुण्यकी पुष्टि के लिये, उत्तम वकगण प्रत्येक महीनेके चारों पर्वो के दिन ( दोनों अष्टमी और दोनों तुर्दशी ) किया करते हैं। पौषध चार प्रकारका होता है। इनमें आहार पौषध है, जो सर्व और देशसे दो प्रकारका है। सर्वसे र-पौषध चतुर्विध आहारका त्याग करनेसे होता है और देशसे आपौषध, त्रिविध आहारका त्याग (उपवास) करनेसे अथवा आचाम्ल, - या एकाशनके पञ्चरुखानों से कोई एक पश्चख्खान करनेसे हो ने है। दूसरा देहसत्कार नामक पौषध है / कह सवेसे और देशसे मेनका होता है। इनमें सर्वथा प्रकारसे शरीरके सत्कारका त्याग किया तानादि मात्रका त्याग करना देशसे शरीर-सत्कार-पौषध तरा ब्रह्मचर्य नामका पौषध है। इसके भी दो भेद हैं ने गो-दिसे परहेज रखना पहला भेद है और दूसरा - काधरल से पात गुरुके पास आय Jun Gun Aaradhak Trust