________________ 348 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। ख़ज़ानेको नहीं ले गया; पर कल छिपकर आयेगा और इसे उठा ले जायेगा।" इसके बाद दूसरे दिन भी बाहर जानेपर सुलसने उसी तरह ख़ज़ाना पड़ा हुआ पाया। उसी समय गुप्त रीतिसे दूर छिपे हुए राजकर्मचारियोंने भी उसको देखा। इसी तरह उसने सात दिनों तक उस खज़ानेको देखा; पर लिया नहीं। राजपुरुषोंने भी उसे इसी तरह आकर चले जाते देखा; पर ख़ज़ाना ले जाते नहीं देखा / इसके बाद आठवें दिन सलस उस ओरका रास्ता छोड़ दूसरी तरफ़ शौच करने गया। यह देख, राजपुरुषोंने विस्मयमें पड़ कर यह सब हाल राजासे जाकर कह सुनाया। यह सुन, राजाने सुलसको बुलवाकर पूछा, "हे सुलस ! तुमने ख़ज़ाना आँखों देखा, पर लिया नहीं। इसका क्या कारण है ?" सुलसने उत्तर दिया,-"स्वामी ! मैंने परिग्रहका प्रमाण किया है, इसके लिये यदि मैं उस निधानको लेता, तो मेरे पास परिमाणसे अधिक धन हो जाता और इससे मेरा नियम भंग हो जाता / इसलिये मैंने उस धनको हाथ नहीं लगाया।"यह सुन, उसकी निर्लोभता देख, राजाने उसकी इच्छा नहीं होते हुए भी उसको अपने ख़ज़ानेका निरीक्षक बना दिया। ___ एक दिन उस नगरके उद्यानमें श्रीअमरचन्द्र नामक चारों ज्ञानवाले जैनाचार्य पधारे / किसीने सुलससे आकर उनके आनेका हाल कह सुनाया। इसके बाद राजा और सुलस दोनोंही सपरिवार गुरुके पास प्राणियोंको मनोवांछित पदार्थ देनेवाली धर्मदेशना सुनायी, जिसे रवः अवसर देखकर सुलसने गुरुसे पूछा, "हे भगवन् ! मुझे बड़े कट लक्ष्मी प्राप्त होती और हाथसे निकल जातो थी, इसका क्या करण र कृपा कर कहिये / " यह सुन, चतुर्विध ज्ञानको धारण करनेवाले * कहा,-“हे भद्र ! बार-बार लक्ष्मी प्राप्त होकर भी क्यों न 3 , हाथसे निकल जाती थी, उसका कारण सुनो- "ताम्राकर नामक प्राममें तुम ताराचन्द्र नामके किरकमले उसे दाम करनेकी बड़ी श्रद्धा रहती थी। वह स्पचको तथा साधुओंको P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust