________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। चला गया। शुभकर्मोंके योगसे सुलस कुएँ की मेखलाके ऊपर आ गिरा-रसमें नहीं डूबने पाया। तब वह बड़े ऊँचे स्वरसे नवकारमन्त्रका उच्चारण करने लगा। कहा भी है, कि - "यह श्रेष्ठ नवकारमन्त्र मङ्गलका स्थान है, यह भयका नाश करता है, सकल संघको सुख उत्पन्न करता है और चिन्ता करनेसे ही सुख देनेवाला है।" . इसके बाद अत्यन्त दुःखित हो कर वह आप-ही-आप अपनेको इस प्रकार बोध देने लगा,-"हे. जीव ! यदि तुमने परिग्रहसे विरति कर ली होती, तो हरगिज़ ऐसे कष्टमें नहीं पड़ते। हे प्राणी! अब भी तो तुम अपनी आत्माको साक्षी दे कर संयम ग्रहण कर लो और अनशन-व्रत करना आरम्भ करो। ऐसा करनेसे तुम्हारा शीघ्र ही इस संसारसे निस्तार हो जायेगा।" ऐसा कह कर वह ज्योंही चारित्र लेनेको तैयार हुआ, त्योंही कुएँके मध्यमें रहने वाला जिनशेखर श्रावक बोला,-'हे भद्र ! चारित्र ग्रहण करनेको ऐसे आतुर मत होओ। इस कुएंसे निकलनेका एक उपाय है। उसे सुन लो / एक बड़ा भारी साँड किसी रास्तेसे कभी-कभी यहाँ रस पीनेके लिये आता है। ज्योंही वह रस पीकर पीछे लौटने लगे, त्योंही तुम खूब मज़बूतीसे उसकी / पूंछ पकड़ कर बाहर निकल जाना। मैं अब मरा चाहता हूँ, इस लिये मुझे आराधना कराओ।" यह सुन, उसका अन्तिम समय आया जान, जिनशासनके तत्वको जाननेवाले सुलसने उसे उत्तम आराधना करायी ; निर्यामणा करायी ; चार शरण कह सुनाये; अरिहन्त, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधु जिनमें मुख्य हैं, ऐसे पाँच पदोंकी व्याख्या करके उसे उनका स्मरण कराया और चौरासी लाख जीवयोनिके जीवोंको मिथ्यादुष्कृत दिलवाये। इस प्रक आगममें बतलायी हुई आराधना सुलसने उसे विस्तारके साथ करमा जिसे जिनशेखर श्रावकने अपने चित्तमें अङ्गीकार किया। इस अनशन ग्रहण कर, मन-ही-मन नवकार मन्त्रका स्मरकाममा शुभ-ध्यान-पूर्वक मृत्युको प्राप्त हो कर वह श्रेष्ठ प्रावक . आठव देव. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust