________________ 340 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। पहले तुम जाकर एक बड़ीसी भैंस की पूछ लाकर मुझे दो।" उनकी यह बात सुन, सुलसने एक मरी हुई भैसकी पूँछ लाकर परिव्राजकको दी। योगीने उस पूछको छः महीने तक तेल में डुबो रखा। इसके बाद / योगीने एक हाथमें कल्प-पुस्तक और दूसरे हाथमें वही पूँछ रख ली और सुलसके माथे पर दो रस्से, दो तुम्बियाँ, एक खटोली, बलिदानकी टोकरी और अग्निका पत्र रख दिया और दोनों वहाँसे चलकर पर्वतके मध्यमें गुफाके द्वारपर आ पहुँचे। वहाँ जो यक्ष प्रतिमा रखी थी, उसकी पूजा कर, वे दोनों गुफाके अन्दर घुसे। वहाँ जो कोई भूत, वैताल राक्षस विघ्न करनेके लिये उठ खड़ा होता था, उसे सुलस निनिडर मनसे बलिदान देता जाता था / यह देख, योगी बड़ा प्रसन्न हुआ। आगे जाने पर एक विवर मिला। उसमें खूप अँधेरा था / उस अन्धकारको दूर करनेके लिये, उन्होंने वही भैसकी पूछ जलायी और उसीके प्रकाशमें वे दोनों उस योजन-प्रमाण विवरको पारकर गये / इतनेमें चार हाथ लम्बा और चार हाथ चौड़ा चौरस रसकूप देखकर दोनोंको बड़ा हर्ष हुआ / इसके बाद योगीने उस खटोलीको तैयार कर उसके दोनों ओर दो रस्से बांध दिये और सुलससे कहा,-"सुलस! तुम इन दोनों तुम्बियोंको हाथमें लिये हुए इस खटोली पर बैठ कर कुएँ में उतर पड़ो।" यही सुन, सुलस दोनों तुम्बियाँ लिये हुए खटोली पर बैठ गया ।योगीने धीरे-धीरे रस्सेको नीचे लटकाना शुरू किया / क्रमशः वह रसके पास पहुँच गया। इसके बाद वह नवकार-मन्त्रका उच्चारण कर रस लेने लगा, इसी समय उसके भीतरसे शब्द निकला,-"यह रस आदमीको कोढ़ी बना देता है, इसलिये हे साधर्मिक ! तुम हाथसे इस रसको मत छुओ / यदि यह रस देहसे छू जायेगा, तो तुम्हारी चली जायेगी। तुम जैन-धर्मके आराधक हो, इसलिये मैं तुम्ह: यता करनेको तैयार हूँ। इन दोनों तुम्बियोंको तुम म मर इनमें रस भर दूंगा।" वह शब्द सुन, सुलसने कहाभाई चर्मबन्धु हो, इसलिये मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँग कहा है, कि- . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust