________________ 338 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। निकला और झरनेके पानीसे अपनी देह धो, संरोहिणी-औषधिके रससे अपने घावोंको आराम कर, वह पर्वतसे नीचे उतर आया। वहाँ / उसने धूलसे भरे और हाथमें कुदाल लिये हुए कितनेही आदमियों और , पंञ्चकुलको देखकर एक आदमीसे पूछा,--"भाई यह कौनसा पर्वत है ? इस देशका नाम क्या है ? यहाँका राजा कौन है ? ये आदमी कुंदालसे क्या खोद रहे हैं ? यह पञ्चकुल कैसे हैं ? यह सब बातें कृपाकर मुझे बतलाओ / " यह सुन, उस आदमीने कहा,- "भाई! जो कोई किसी . देशमें आता है, वह यह सब बातें ज़रूर पहलेही मालूम कर लेता है / तुम तो इस देशका नाम भी नहीं जानते! तो क्या तुम आसमानसे टपक पड़े हो या पातालसे निकल आये हो ? अगर तुम्हें यहाँका कुछ भी हालं नहीं मालूम था, तो फिर तुम यहाँ किस लिये आये ?" सुल. .. सने कहा,-- "भाई ! तुमने यह जो कहा, कि क्या तुम आसमानसे टपक पड़े हो, वह बिलकुल ठीक है। मैं सच-मुच आसमानसेही टपक पड़ा हूँ।" उसने पूछा, “सो कैसे ?" सुलसने उत्तर दिया,-"एक विद्याधर मेरा मित्र है / उसने मुझसे एक दिन कहा, कि मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें सुमेरु-पर्वत दिखा लाऊँ। यह सुन, मैं कौतूहलके मारे उसकी सहायतासे आकाश-मार्गसे चल पड़ा / इतने में उसका कोई शत्रु विद्याधर रास्ते में मिल गया। उस समय मेरा मित्र अपने शत्रुसे लड़ने लंगा और मुझे छोड़ दिया, जिससे मैं नीचे गिर पड़ा।” इस प्रकार सुलसने उसे अपनी अक्लसे ऐसा जवाब दे दिया, जो सचही मालूम पड़ता था। उसने फिर कहा, - "हे भाई ! मैं इसी तरह आसमानसे / / टपक पड़ा हूँ, इसलिये मैंने जो-जो बातें तुमसे पूछी हैं, उनका रिक सिलेवार उत्तर मुझे दे दो।" यह सुन, उस आदमीने कहा रोहणा नामका देश है, इस पर्वतका नाम भी रोहणाचल है. राजाका नाम वज्रसागर है / यह पञ्चकुल राजाके ही माल लिये हुए ये लोग ज़मीन खोदकर इसमेंसे रत्न निकम इह और इसके लिये राजाको कर देते हैं।” यह सुन, सुलसने सोचा,-"इस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust