________________ 325 - _ षष्ठ प्रस्ताव। भोगते हुए वैराग्य लेकर भार्या के साथही श्रीसुस्थित नामक आचार्यसे दीक्षा ग्रहण कर ली। चिरकाल तक दीक्षाका पालन कर, शुभध्यानके साथ मृत्युको प्राप्त होकर वह प्रियाके साथ स्वर्गको चला गया। - जिनदत्त-कथा समाप्त। अवके श्रीशान्तिनाथ स्वामी राजा चक्रायुधसे चौथे व्रतका विचार कहने लगे,–“हे राजन् ! मैथुन दो तरहका होता है-एक औदारिक और दूसरा वैक्रिय / औदारिक मैथुन भी तिर्यञ्च और मनुष्यके भेदसे दो प्रकारका होता है तथा वैक्रिय मैथुन देवाङ्गना-सम्बन्धी होनेके कारण एक ही प्रकारका होता हैं। सब व्रतोंमें यह व्रत बड़ा दुष्कर है। इस विषयमें कहा है, कि___ “मेरू गिरिठो जह पन्चयाणं, एरावणो सारतरो गयाणं / सीहो बलिछो जह सावयाणं, तहेव सील पवरं वयाण // 1 // " अर्थात--"जैसे सब पर्वतोंमें मेरु बड़ा है, सब हाथियोंमें ऐरावत बड़ा है, और सब शिकारी पशुओं में सिंह बड़ा है, वैसेही सब व्रतोंमें शील बड़ी है।" परस्त्रीका त्याग करना ही शीलव्रत कहा जाता है और सब स्त्रियोंका निषेध करना ब्रह्मचर्य कहलाता है / जो पर-स्त्री-लम्पट होता है, वह बड़ा भयङ्कर कष्ट पाता है। कहा भी है, कि- .. 'नपुंसकत्वं तिर्यक्त्वं, दौर्भाग्यं च भवे भवे / भवेन्नराणां स्त्रीणां चा-न्यकान्तासक्त चेतसाम् // 1 // ' / अर्थात्--"परायी नारी में आसक्त चित्तवाले पुरुषों और पराये पुरुषमें मन लगानेवाली स्त्रियों को जन्म-जन्म में नपुंसकत्व, तिर्यक्त्व और दुर्भाग्य प्राप्त होता है / " / ____ इसलिये मनुष्योंको चाहिथे, कि परस्त्री पर मन न ललचाये। यदि वह परस्त्रीका त्याग नहीं करता, तो उसे वैसाही दुःख होता है, जैसा करालपिङ्गल नामक पुरोहितको हुआ। यह सुन, चक्रायुध राजाने P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust