________________ 328 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। तन्त्र-मन्त्र करके मेरी यह पीड़ा शान्त कर दो।" यह सुन, उसने अपनी उत्पन्न की हुई पीड़ा मन्त्रोपचार करके शान्त कर दी। उस समय रोग रहित हो जानेके कारण प्रसन्न होकर राजाने पुरोहितसे कहा,-"हे पूज्य ! तुम्हारी जो कुछ इच्छा हो, मांग लो।" पुरोहितने कहा,-"हे राजन् ! आपकी दयासे मेरे किसी चीज़की कमी नहीं है ; पर हे नरेश्वर ! मेरा एक मनोरथ आप अवश्य पूरा कर दें। वह यह है, कि किंजल्प नामक द्वीपमें किंजल्पक-जातिके पक्षी रहते हैं उनका स्वर बड़ाही सुन्दर होता है, उनका रूप भी बड़ा ही मनोहर होता है। उन्हें देखनेसे मनुष्यको बड़ा सुख होता है। उन्हीं पक्षियोंको लानेके लिये आप यहाँके पुष्पदेव नामक वणिक्को आज्ञा दे दीजिये।" यह सुन, राजाने तत्काल पुष्पदेवको बुलाकर, कहा,—“सेठजी! तुम किंजल्प द्वीपमें जाकर वहाँसे किंजल्पक जातिके पक्षी ले आओ।" राजाकी यह बात सुन, उसने सोचा,-"यह सारा प्रपञ्च उसी पुरोहितका रचा हुआ है।" ऐसा विचार कर उसने राजासे कहा, "जैसी आपकी आज्ञा / " यह कह, वह अपने घर गया। इसके बाद उसने अपने घरमें तहख़ाना सा गड्ढा खुदवाकर उस पर एक यन्त्र-युक्त पलँग रखवा दिया और अपने कुछ विश्वसनीय मनुष्योंको बुलाकर कहा,-"अगर किसी दिन कराल. पिङ्गल पुरोहित यहाँ आ पहुंचे, तो तुम लोग उसे इसी कलदार पलँग. पर बैठाना और इसी गड्ढे में गिरा देना / इसके बाद गुप्त रीतिसे उसे मेरे पास ले आना।" इस प्रकारकी आज्ञा अपने सेवकोंको देकर पुष्पदेव, देशान्तर जानेके बहाने घरसे बाहर निकला और नगरके बाहर एक गुप्त स्थानमें जा छिपा। इसी समय पुष्पदेवको परदेश गया जानकर करालपिंगल * बड़ी खुशीके साथ उसके घर आ पहुँचा। वहाँ पुष्पदेवके विश्वासी नौकर लुके-छिपे बैठे हुए थे। पुष्पदेव की पत्नीने बड़ी ख़ातिरके साथ पुरोहितको उसी कलदार पलंगपर बैठाया। बैठतेही वह ख़न्दकमें गिर पड़ा, इसके बाद छिपे हुए सेवक बाहर आये और उसको मुकें बांधकर उसे पुष्पदेवके पास ले आये। तब बुद्धिमान P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jyit Gun Aaradhak Trust