________________ षष्ठ प्रस्ताव। . 335 wwwrammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmnim ऐसा विचार उत्पन्न होतेही उसने पूछा,"हे भद्र! तुम कहाँसे आ रहे हो और कहाँ जाओगे?" यह सुन, सुलसने कहा, "मैं तो यहाँ अमर'पुर नगरसे आया हूँ।" सेठने फिर पूछा,-"तुम यहाँ किसके घर अतिथि होकर ठहरे हो ?" उसने विनयके साथ उत्तर दिया,-"सेठजी! इस समय तो मैं आपका ही अतिथि हूँ।" यह सुन, सेठ उसे अपने घर ले गया। वहाँ उसे अभ्यङ्ग, उद्वर्त्तन, स्नान, भोजन आदि कराकर उसने फिर उससे यहाँ आनेका कारण पूछा। तब सुलसने कहा, "हे तात ! मैं द्रव्य उपार्जन करनेके लिये घरसे बाहर निकला हूँ। मुझे कोई दूकान भाडेपर दीजिये, जिसपर बैठकर मैं व्यापार करूँ।" इसपर सेठने उसे एक दूकान दिलवा दी। उसीपर बैठकर सुलस व्यापार करने और धन कमाने लगा। छः महीने में उसने पासकी मुहरोंको दुगुना कर डाला / तब वह उस धनसे किराना माल खरीद कर, बहुत बड़ा काफ़िला साथ ले, समुद्रके किनारे बसे हुए तिलकपुर नामक नगर में व्यापार करनेके लिये आया। वहाँ भी उसे मनचीता लाभ हुआ। इसके बाद वह अधिक लाभके लिये जहाज़में किराना माल भरकर स्वयं भी उसीमें सवार हो गया और रत्नद्वीपमें पहुंचा। वहाँ पहुँचकर वह भेट लिये हुए उस द्वीपके राजाके पास मिलने गया। राजाने भी उसका आदर-सम्मान कर उसका आधा कर माफ़ कर दिया। वहाँ मनचाहा लाभ उठानेके इरादेसे किराना बेच, तरह-तरहके रत्न लिये और बहुतसा धन इकट्ठा किये हुए वह अपने देशकी ओर जानेके लिये जहाज़पर सवार हो गया / राहमें जाते-जाते दुर्भाग्यके मारे उसका जहाज़ समुद्रमें टूट गया-सारा धन नष्ट हो गया / केवल अपनी जान लिये एक तख्ता पकड़े हुए वह पाँच दिनोंमें समुद्रके किनारे गा। वहाँ केलेका जंगल देख, उसीके मनोहर फल खा और एक स्थजिलापाय देख, उसीके पानीसे प्यास बुझा, स्वस्थ होकर उसने सोचा- मैंने कितनी बड़ी सम्पत्ति अर्जन की थी ! पर आज इन हाथ-पैरोंके सिवा मेरे पास कुछ भी न रहा। पहननेके वस्त्र 'P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust