________________ षष्ठ प्रस्ताव / wwwwwwwwwwwwwmommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwww प्रवृत्ति होती थी, हाथियों को ही मद होता था, हारके लिये ही छिद्र ढूँढ़ा जाता था और कन्याके विवाहमें ही करपीड़न * होता था ; किन्तु प्रजाके विषयमें इनमेंसे एक भी नहीं था। उसी नगरमें न्यायंधर्ममें तत्पर अमरसेन नामके राजा और वृषभदत्त नामक सेंसें रहते थे। वे विशेषतया जैनधर्मके पालक और समकितके धारण करनेवाले थे। सेठकी स्त्री जिनदेवी बड़ी अच्छी श्राविका थी। उसके गर्भसे सेठको सुलस नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ था। जब वह जवान हुआ, तब उसके माता-पिताने उसकी शादी सेठ जिनदासकी पुत्री सुभद्राके साथ कर दी। एक दिन सुलसने पिताकी आज्ञासे सद्गुरुके पास जाकर श्रावकके ग्यारहों व्रत (परिग्रह प्रमाणके सिवा ) ग्रहण किये। उसके बादसे सुलस कलाओंमें अधिक दिलचस्पी रखनेके कारण विषय-विनो. दमें वैसा मन नहीं लगाता था। सेठानीने इस प्रकार अपने पुत्रको धर्ममें तत्परता और शास्त्रों में आदर रखते देख कर सेठसे कहा, "हे स्वामी ! आपका पुत्र तो साधुसा मालूम पड़ता है, इसलिये आप ऐसा उपाय कीजिये, जिससे उसके मनमें विषयकी इच्छा उत्पन्न हो।" यह सुन, सेठने कहा, "हे प्यारी! तुम ऐसी बात ने कहो; क्योंकि अनादि कालसे प्राणी विषय-व्यापारमें आपसे आप प्रवृत्त हो जाते हैं ; पर धर्ममें प्रवृत्ति होनी ही मुश्किल होतो है।" - ऐसा कह कर भी सेठानीकी हठके मारे सेठने अपने पुत्रको चतुराई सीखनेके लिये नटों, विटों और जुआरियोंके पास भेजा, इसके परिणाममें सुलस कुछ ही दिनोंमें सब कलाएँ भूल गया। वह इन गये-गुज़रे मनुष्योंकी सङ्गतिमें पड़ कर सदा हँसी-दिल्लगी और तमाशा करने, शृङ्गार कथाएँ सुनने, नाटक देखने और जुआ खेलने में ही मग्न रहने लगा। क्रमशः वह इन्हीं लोगोंके साथ-साथ एक दिन कामपतोका नामक वेश्याके घर जा पहुँचा। उस रण्डीने उसे धनवान्का बेटा जान कर, मन-ही-मन बड़ा अचम्भा माना और आसे उठ कर * पाणिग्रहण-दूसरे पलमें राजाके कर ( टिकस') की पीड़ा . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust