________________ . षष्ठ प्रस्ताव / WwwA पूछा,-"क्या वह कन्या कभी किसी जगह तुम्हें मिली थी? उसने कभी तुम्हें कहीं देखा था ?" तब उसने जिनमन्दिर में उससे मुलाकात होने का हाल पितासे कह सुनाया। यह सुन, उसके पिताने कहा,"तुम विवाह करना स्वीकार कर लो। बेटा! कहा भी है, कि __ "तथा न शोभते वत्स ! वैराग्यं तव यौवने / __ताम्बूले शर्कराचूर्ण, यथा चैत्रे च वर्षणम् // 1 // " __ अर्थात- 'हे वत्स ! जैसे पानमें शक्कर नहीं अच्छी लगती, और चैतके महीने में बरसात बुरी मालूम होती है, वैसेही युवावस्थामें तुम्हारा यह वैराग्य भी अच्छा नहीं मालूम होता / ' ___"इसलिये हे पुत्र ! तुम यह विवाह करना स्वीकार कर, मेरे मनको आनन्दसे पूर्ण कर दो।" पिताकी यह बात सुन, जिनदत्त चुप रह गया। __एक दिन किसी कारणसे जिनमती घरसे बाहर निकल कर रास्तेमें चली जा रही थी। इसी समय वसुदत्त नामक कोतवालने उसको देखा। उसकी सुन्दरतापर मुग्ध होकर उसने उसके पितासे उसके साथ अपना विवाह कर देनेकी प्रार्थना की। उसने कहा,-"कोतवाल साहब ! मैं तो यह कन्या सेठ जिनदासके पुत्र जिनदत्तको दे चुका हूँ / अब तो यह बात नहीं बदल सकती। कहा भी है, कि 'सकृजल्पन्ति राजानः, सकृजलपन्ति पण्डिताः। सकृत्कन्या; प्रदीयन्ते, वीण्येतानि सकृत्सकृत // 1 // अर्थात्--"राजा एकही बार बोलते हैं, पण्डित एकही बार बोलते हैं, कन्या एकही बार दी जाती है। ये तीनों काम एकही बार होते हैं।" उसकी यह बात सुन, उस दुष्टके मनमें बड़ा क्रोध हुआ और वह रात-दिन जिनदत्तके विनाश करनेका मौका हूँढने लगा। एक दिन राजा घोड़े पर सवार हो, क्रीड़ा * करनेके निमित्त वनमें गये। वहाँ अश्वकीड़ा करते समय उनके एक कानका कीमती कुण्डल गिर पड़ा। P.P.ADSunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust