________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। पड़ता है। यही सोचकर मैं फिर कर घर लौट आया। अब यदि आपकी आज्ञा हो, तो मैं किसी-न-किसी उपायसे उस धनके अधिनाः यक सर्पको मार डालूं, जिससे वह धन हाथ लग सके।" उसकी ऐसी बातें, जो सच.सी मालूम पड़ती थीं, सुनकर राजाने कहा,"अच्छा, तुम जैसा चाहो, वैसा करो।" यह सुन, सुबुद्धिने उसी समय सबके सामने कंडे लाकर उस वृक्षका कोटर भर दिया और उसके चारों ओर सूखे हुए कंडे रखकर उनमें आग लगा दी। कंडोंके धुएँसे व्याकुल होकर दुष्टबुद्धिका पिता भद्रसेठ उसी समय वृक्षके कोटरमेंसे निकल आया और ज़मीनमें गिर पड़ा। राजा आदि सब लोगोंने उसे देखकर तुरत पहचान लिया। उसे देख, आश्चर्यित हो. कर सबने उससे पूछा,-"भद्रसेठ ! यह क्या मामला है ?" उसने कहा, "हे राजन् ! मेरे कुपुत्र दुष्टवुद्धि दुर्बुद्धिने ही इस प्रकार मुझसे झूठी गवाही दिलवायी है। झूठ बोलनेका फल तो मुझे इसी जन्ममें मिल गया। इसलिये किसीको भूले भी झूठ नहीं बोलना चाहिये।" यह कह, सेठ चुप हो रहा। इसके बाद राजाने दुर्बुद्धिका सर्वस्व छीन लिया और उसे देशनिकाला दे दिया। सत्यवादी होनेके कारण राजाने सुबुद्धिको वस्त्रालङ्कार आदि देकर सम्मानित किया और सबने उसकी बड़ी प्रशंसा की। - इस कथासे शिक्षा ग्रहण कर, मनुष्योंको चाहिये, कि इस लोक और परलोकमें हित करनेवाला सत्यवचन ही बोले और असत्यका सर्वथा त्याग करें। ......... ... .. भद्रसेठ-कथा समाप्त / ..... . .... ..... अब स्थूल अदत्तका त्याग करना, तीसरा अणुव्रत है। इसका जिनदत्तकी भांति पालन करना चाहिये। जब श्रीशान्तिनाथ स्वामीने 4 ऐसा कहा, तब चक्रायुध राजाने कहा, "हे स्वामी! वह जिनदत्त कौन था ? और उसने किस प्रकार इस तीसरे व्रतका पालन किया था ?" ऐसा पूछने पर प्रभुने कहा, "भद्र ! उसकी कथा यों है, सुनो, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust