________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। सुबुद्धिने कहा-”हे मित्र ! यदि मुझे यह धन हड़प कर लेनेकी ही इच्छा होती, तो मैं पहले तुमसे इसकी चर्चा ही क्यों करता ? तुम खुद ही धोखेबाज़ हो, इसीलिये मुझे भी ऐसा ही समझ रहे हो।" इसी तरह परस्पर झगड़ा करते हुए वे दोनों राजाके पास पहुंचे। वहाँ सबसे पहले दुर्बुद्धिने ही राजासे फ़र्याद की, कि - "हे देव ! मैंने एक जगह गड़ा हुआ धन पाया था। उसे मैंने आपके ही डरले एक पेड़के नीचे गुप्त रीतिसे गाड़ दिया था,परन्तु इस सुबुद्धिने मुझे खूब छकाया-इसने वह सारा धन वहाँसे उड़ा लिया है / इसलिये हे नरेन्द्र ! आप इसका जैसा उचित हो वैसा न्याय कर दें।” यह सुन, राजाने उससे पूछा,"इस विषयमें तुम्हारा कोई गवाह भी है या नही ?" दुर्बुद्धिने कहा,"हे स्वामिन् ! और तो कोई गवाह नहीं है; पर मैंने जिस वृक्षके नीचे धन गाड़ा था, वह वृक्षही यदि कह दे, तब तो आप सच मानेंगे न ?" राजाने कहा,-"हाँ,जरूर मानूंगा।" उसने कहा, “अच्छा तो कलही इस बातकी परीक्षा कर लीजिये इसके बाद राजाने दोनोंकी जमानत लेकर उन्हें बिदा कर दिया और वे अपने-अपने घर चले गये। सुबुद्धिने सोचा, “ऐ ! यह दुर्वृद्धि ! ऐसा दुष्कर कार्य किस तरह कर सकेगा ? क्योंकि लोग कहा करते हैं, कि धर्मकी ही जय होती है, अधर्मकी नहीं।" ऐसा विचार कर वह निश्चिन्त मनसे अपने घर गया। - इधर दुष्टबुद्धिने अपने घर आ, कपटका जाल फैलानेके विचारसे अपने पिता भद्र श्रेष्ठीको एकान्तमें बुलाकर कहा, "हे पिता ! मेरी एक बात सुनो / सारी मुहरें मेरे हाथमें आ गयी हैं। मैं रातके समय चुपकेसे तुम्हें उस वृक्षके कोटरमें ले जाकर रख आऊँगा। सवेरे जब सब लोग इकट्ठे हों, तब तुम कहना, कि सुबुद्धिने ही दुर्वद्धि को धोखा देकर सब धन ले लिया है। यह सुन उसके पिताने उससे कहा, हे पुत्र ! तेरा यह विचार अच्छा नहीं है। तो भी तेरा आग्रह देखकर में ऐसा ही करूंगा।" यह सुन, हर्षित होते हुए दुर्वद्धिने रातके समय अपकले अपने पिताको ले जाकर उसी घट-वृक्षके कोटरमें रख दिया। Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.