________________ 314 श्रोशान्तिनाथ चरित्र / व्याधिसे अत्यन्त पीड़ित हो रहा था, घूमता-फिरता हुआ स्मशान में आया और वहाँ टिके हुए मुनिकी बड़ी भक्तिके साथ वन्दना की / उनके प्रभावसे मेरा पुत्र नीरोग हो गया। उसने घर आकर मुझसे यह हाल , कहा / यह सुन, कुटुम्ब सहित रोगसे पीड़ित मैं भी वहाँ गया और मुनिको प्रणाम किया। इसके बाद मैंने श्रावकधर्म अङ्गीकार कर लिया और जीवञ्जीव पर्यन्त हिंसाका त्याग कर दिया। हे राजन् ! उन मुनि. घरने मुझसे अपने प्रतिबोधकी कथा कह सुनायी थी, इसलिये मैं उनका सारा हाल जानता हूँ।" यह सुन, रोजाने सन्तुष्ट होकर यमपाशका सत्कार किया और उसे सारी चाण्डाल-जातिका स्वामी बना दिया। इसके बादराजाके हुक्मसे दूसरे चाण्डालने मम्मणको कत्ल कर डाला / यमदण्ड अपनी आयु पूरी होनेपर मरकर देवता हो गया। प्रणतिपात-विरति-सम्बन्धिनी यमपाश-कथा समाप्त / दूसरा मृषावादविरमण नामक व्रतहै। कन्या, गौ, और भूमिके। विषयमें असत्य बोलनेसे परहेज़ रखना, किसीको धरोहर न मार लेना या झूठी गवाही न देना यही पाँचों मृषावाद-विरमणके स्वरूप हैं / इसके विषयमें भद्रश्रेष्ठीकी कथा इस प्रकार है: ... सत्यव्रतपर भद्रश्रेष्ठीकी कथा। इस जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें क्षिति-प्रतिष्ठित नामक नगर है। उसमें सुबुद्धि और दुर्वद्धि नामके दो निर्धन बनिये रहते थे। वे दोनों बड़ेही. प्रसिद्ध और परस्पर मैत्री रखनेवाले थे। एक बार वे दोनों बहुतसा किराना माल लेकर धन कमानेके लिये परदेशको चले। क्रमशः वे लोग 4 एक बड़े ही पुराने और जीर्ण नगरमें आ पहुंचे। वहाँ वेलाभकी इच्छासे कई दिनोंतक टिके रह गये / एक दिन सुबुद्धि एक टूटे-फूटे मकानमें शौच करनेके लिये बैठा हुआ था, कि इसी समय उसे एक खजाना P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust