________________ 312 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। . Sie ber e c यमपाश-मातङ्गकी कथा |18 ... किसी नगरमें यमपाश नामका एक तलारक्षक रहता था। वह जातिका चाण्डाल था ; परन्तु कर्मसे चाण्डाल नहीं था। उसी नगरमें दयादि गुणोंसे युक्त नलदाम नामका एक सेठ रहता था। उसकी स्त्रीका नाम सुमित्रा था। उसीके गर्भसे उत्पन्न मम्मण नामका एक पुत्र भी उसके था। एक दिन उस नगरके राजाके यहाँ कोई व्यापारी एक बड़ा ही अच्छा घोड़ा ले आया। उसकी परीक्षा करनेके लिये ज्योंही राजा उसपर सवार हुए, त्योंही राजाका कोई शत्रु देव उसघोड़े पर सवारी कर बैठा, जिससे वह घोड़ा आकाशमें उड़ गया और बड़े वेगसे दौड़ता हुआ बड़ी दूर एक वनमें चला गया। वहाँ अकेला पा. कर, उस निर्जन वनको देख, भयभीत हो, राजाने उस घोड़ेको छोड़ दिया। वह घोड़ा वहींका वहीं गिर कर ढेर हो गया। इसी समय एक मृगराजाके पास आ पहुँचा। राजाको देख, जाति स्मरण द्वारा अपने पूर्व भवका हाल जानकर उस मृगने पृथ्वी पर लिख कर राजा- . को सूचित किया, कि-“हे राजन् ! मैं पूर्व भवमें आपका देवल नामका वस्त्राभूषणोंकी रक्षा करनेवाला सेवक था.। मरते समय आर्त्तध्यान द्वारा मरण प्राप्त करनेके कारण ही मैं तिर्यंच योनिमें मृग हुआ हूँ।" इस प्रकार अपना हाल सुनाकर उसने प्यासे राजाके आगेआगे चलकर उन्हें एक जलाशय दिखलाया। वहाँ पहुँचकर राजाने जलपान किया, मुंह धोया और स्वस्थ हुए, इतनेमें राजाकी सेना भी आ पहुँची। राजा अपने जीवनदाता मृगको साथ लिये हुए . अपने नगरमें आये। वहाँ वह मृग राजप्रासादसे लेकर नगरके चौक आदि स्थानोंमें स्वच्छन्द भावसे विचरण करने लगा। उसे कोई बातों- .. से भी दुखी नहीं करता था। कदाचित् वह किसीका कुछ नुकसान P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust