________________ . षष्ठ प्रस्ताव / 311 करनेसे इनकार किया और घरकी तरफ चल पड़ा। रास्तेमें जाते. जाते वह फिर बेहोश होकर गिर पड़ा। इस बार भी उसके स्वजनोंकी प्रार्थना सुनकर गारुड़िकने उसकी बेहोशी दूर कर दी। इसी तरह तीसरी बार भी वह बेहोश हुआ और फिर होशमें लाया गया। अबके उसे गुढ़ निश्चय हो गया और गन्धर्व नागदत्तने उसकी बात मान ली। इसके बाद वह देव उसे जङ्गल में ले गया और अपना देव-रूप दिखा, उसे पूर्व भवका स्वरूप बतलाया, जिससे नागदत्तको जाति-स्मरण हो आया। वह पूर्व भवका स्मरण कर प्रत्येकयुद्ध मुनि हो गया। इसके बाद देवने उसे प्रणाम कर अपने स्थानकी यात्रा की। इसके अनन्तर वह मुनि, चार कषाय-रूपी-सोको शरीर-रूपो पिटारीमें बन्दकर, उन्हें बाहर आनेले रोकने लगा। इस प्रकार मुनि नागदत्त कषायोंको जीत, समग्र कर्मों का क्षय कर, कितनेही कालके अनन्तर केवल-ज्ञान प्राप्तकर, मोक्षको प्राप्त हुआ। इति गन्धर्व-नागदत्त-कथा समाप्त | __शान्तिनाथ परमात्माने कहा, "इसी प्रकार विवेकी जनोंको चाहिये, कि पांचों प्रकारके प्रमाद त्याग दें तथा चारों प्रकारके धर्म को अङ्गीकार करें। यह धर्म साधु और श्रावकके भेदसे दो प्रकारके हैं। इनमें क्षान्ति इत्यादि दस प्रकारके यतिधर्म कहे जाते हैं और श्रावक-धर्म बारह तरहके हैं। दोनों ही प्रकारके धर्मों में पहले समकित माना गया हैं। यह समकित दो तरहका, तीन प्रकारका, चार प्रकारका, पांच प्रकारका और दस प्रकारका कहा जाता है। इसे सिद्धान्तके अनुसार जानना। और पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत-ये बारह प्रकारके श्रावकधर्म अनन्त जिनेश्वरोंने बत. लाये हैं। इनमें प्रथम स्थूल प्राणातिपात नामक पहले अणुव्रतको कथा इस प्रकार है- . . . ... * . मद्य, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा / + दान, शील, तप और भाव / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust