________________ :: चतुर्थ प्रस्ताव / ऐसा विचार कर वह विविध भाषाओंका जाननेवाला देवराज बड़ी सावधानीके साथ सुनने लगा। उसने किसी पिशाचको इस प्रकार कहते सुना- . . ... "फो फोजाणसि किंचि, सो भण्णइ नो कहहि मह किं तं / ... जंपइ इमोऽवि अजं, मलिहीए सो नलिंद त्ति // 1 // " , अर्थात् - "अरे भाई / कुछ जानते भी हो ? उसने कहा, "नहीं, मैं तो कुछ भी नहीं जानता; तुम कुछ जानते हो, तो मुझे कह सुनाओ।" इस पर बूढे पिशाचने कहा,--"अाजही उज्जयिनीके राजाकी मृत्यु होनेवाली है।" __ "बीएण तश्रो पुठ्ठो, केण निमित्तेण कीइ वेलाए। सो जंपइ सप्पागो, पढमे पहलम्मि लत्तीए // 2 // " . अर्थात्--"इसपर दूसरेने पूछा,--"किस तरहसे और कब राजाकी मृत्यु होगी ? " इसके उत्तरमें उस वृद्ध पिशाचने कहा,-"रातके पहले ही प्रहरमें सांपके काटनेसे राजाकी मृत्यु होगी।" .. ..: पिशाचकी यह बात सुन, उसे सच समझकर देवराजने मन-ही मन बड़ा दुःखित होते हुए विचार किया,- "हाय ! देवने यह क्या किया ? अच्छा, रहो, मैं अब ऐसी कोई तरकीब लड़ाता हूँ, जिससे राजाका संकट टले।" ऐसा विचार करता हुआ, वह शीघ्र ही राजा के पास आया / इसके बाद रातके समय राजा सब सभासदोंको विदा . . ,कर, अपने शयन-मन्दिरमें जा, रानीके साथ सुख-शय्या पर सो रहे। रातके पहले पहरमें देवराजका पहरा था / इसलिये वह उस शयनमन्दिरके मध्य में, ऊपर, नीचे और अगल-बग़ल-सब ओर बड़ी शंका और सतर्कता-भरी दृष्टिसे देखता हुआ, तलवार खींचे हुए, गुप्त रीतिसे ___दीवेकी ओटमें खड़ा रहा। इसी समय छतके एक छिद्रमेंसे एक काला सांप निकल कर लटक आया। यह देख, उसने तत्काल एक हाथसे , उसका मुँह पकड़, दूसरे हाथकी तलपारसे उसे दो टुकड़े कर दिया P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust