________________ . पञ्चम प्रस्ताव / :. 225 ninami स्मरण हो आया. और वे अपनी भाषामें बोल उठे,-"हे स्वामिन् ! हमें अपना चरित्र सुनकर वैराग्य उत्पन्न हो आया है, इसलिये अब जो कुछ हमारे करने योग्य हो, वह हमें बतलाइये।" यह सुन, राजाने कहा,-"हे पक्षियो! तुम, सच्चे. दिलसे समकित अङ्गीकार कर पापका नाश करनेवाला अनशन व्रत ग्रहण करो।" यह सुन, उन दोनोंने उसी प्रकार अनशन-व्रत ले लिया। इसके बाद पञ्चनमस्कारका स्मरण करते हुए, मरणको प्राप्त होकर वे भुवनपतिमें जाकर देवता हो गये / राजा मेघरथ पौषध-व्रत ग्रहण कर, उसके अन्तमें पारणा कर फिर भोग-सुख भोग करने लगे। .. एक दिन, राजा मेघरथ, परिषह और उपसर्गाके विषयमें निर्भय होकर वैराग्यकी प्रेरणासे अहम-तप कर, शरीरको निश्चल कर, प्रतिमा धारण ( काउस्सग्ग = कायोत्सर्ग) किये हुए थे, इसी समय अट्ठाईस लाख विमानोंके अधिपति ईशानेन्द्रने भक्तिके आवेशमें आकर कहा,“अपने महात्म्यसे इन तीनों लोकोंको जीतनेवाले और पापको नाशकरनेवाले हे राजन् ! आप तोर्थङ्कर होंगे, इसीलिये मैं आपको नमस्कार करता हूँ।”. इस प्रकार ईशानेन्द्रके किये हुए नमस्कारको सुन कर, उनके पास बैठी हुई उनकी स्त्रियोंने पूछा,-''हे स्वामी ! अभी किसको आपने प्रणाम किया ?". देवेन्द्रने कहा,- "हे सुन्दरी ! पृथ्वीमण्डलपर पुण्डरीकिणी नामक नगरीके राजा मेघनाथ इस समय अट्ठम-तप कर, स्थिर-चित्त हो, शुभध्यानसहित प्रतिमा किये हुए हैं। उन्होंको मैंने प्रणाम किया है। इस प्रकार शुभध्यानमें तत्पर और धर्म-कर्ममें निश्चल उन मेघरथराजाको ध्यानसे हटाने में इन्द्रसहितः सभी देवता भी असमर्थ हैं।" . .. ... . ... .......... - इन्द्रकी यह बात सुन, उनकी दोनों स्त्रियाँ-सुरूपा और अतिरूपा राजाको विचलित करने के लिये वहाँ आयीं। अत्यन्त मनोहर रूपलावण्य और कान्तिसे युक्त वे दोनों देवियाँ तरह-तरहके विलासके साथ शृंगार-रसको प्रकट करती हुई राजासे बोलीं,-“हे स्वामी ! हम P.P.ACTSnratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust