________________ पञ्चम प्रस्ताव। rrrrrr . .. "स्वस्तिश्री उजयिनी नगरीमध्ये घत्सराज राजाकी सेवामें क्षितिप्रतिष्टित नगरके पुरजनोंका प्रणाम-पूर्वक निवेदन है, कि-जैसे गरमीसे व्याकुल मनुष्य मेघका स्मरण करते हैं और ठंढसे ठिठरते हुए लोग आगकी शरण लेते हैं, वैसेही राजा देवराजके सताए हुए हम लोग आपको याद कर रहे हैं / इसलिये आप जल्दीसे आकर हमारे स्वामी बनिये, नहीं तो हमलोग किसी और न्यायी मनुष्यको अपना स्वामी बना लेंगे।" . . . . . उस पर्चे में लिखा हुआ यह वृत्तान्त सुनकर राजा वत्सराज, सारी सेना लिये हुए, क्षितिप्रतिष्ठित नगरीके पास आ पहुंचे और देवराजके निकट एक दूत भेजा। इसी समय उनके आनेकी ख़बर पाकर राजा देवराज भी तत्काल बख्तर पहने हुए नगरके बाहर चले आये / परन्तु उनके परिजन, उनसे असन्तुष्ट थे. इसलिये कोई उनके पीछे-पीछे नहीं आया / इसीलिये वत्सराजको अपनेसे बलवान् समभ और अपने सेवकोंको अपनेसे नाराज़ देख, देवराज न जाने किधर भाग गये / तब समस्त नगर-निवासियोंने हर्षके साथ बड़ी धूमधाम करते हुए वत्सराज राजाका नगरमें प्रवेश कराया / वत्सराज इन दोनों राज्यों का पालन करते हुए सुखसे समय बिताने लगे। ... .. एक दिन उद्यान-रक्षकने राजाके पास आ, प्रणाम कर, कहा, "हे स्वामी ! मैं आज बड़े प्रेमसे आपको बधाई देता हू , कि भाज इस नगरके बाहरवाले उद्यानमें चार प्रकारके शानका धारण करनेवाले भाचार्य महाराज पधारे है / यह सुन, हर्षित हो, राजाने उसे इनाम दिया और सब सामग्रियोंके साथ भक्तिपूर्वक उद्यानमें आ पहुँचे / वहाँ मुनीश्वरकी वन्दना कर, उचित स्थानमें बैठ, उन्होंने गुरुके मुखसे साधुओं ओर श्रावकोंके धर्मके सम्बन्धमें देशना सुनी और श्रावक-धर्म अङ्गीकार कर घर आये / सूरि भी मास-कल्प पूरा कर वहाँसे अन्यत्र विहार कर गये। ... इसके बाद गुरुके उपदेशसे राजा वत्सराजने बहुतसे जिन-चैत्य P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust