________________ 264 . श्रीशान्तिनाथ चरित्र / * अर्थात्--" भक्ति, प्रेम, प्रियवचन, सम्मान और विनयके दान बिना लोकमें कोई शोभित नहीं होता।" ... यह सुन, कुमारने फिर कहा,-"महाराज ! आप अपनी दयादृष्टिसे / मुझे देखें और सम्यक् प्रकारसे मुझे आज्ञा प्रदान करें, बस यही आपका बड़ा भारी दान है।" यह सुन, योगीने कहा, "हे कुमार ! मेरे पास एक बड़ा ही उत्तम मंत्र है। उसका मैंने आठ वर्ष तक जप किया है। इसलिये यदि एक दिन रात भर तुम विघ्नों का निवारण करनेके लिये तत्पर होओ, तो मेरा सारा परिश्रम सफल हो जाये।” यह सुन, कुमारने कहा, "हे प्रभु ! वह काम मुझे किस दिन करना होगा ?" योगीने कहा, "हे कुमार! तुम कृष्ण चतुर्दशीके दिन अकेले रातके - समय खड्ग लिये हुए स्मशानमें आओ। मैं वहाँ अपने अन्य तीन शिष्योंके साथ मौजूद रहूंगा। यह सुन, कुमारने कहा,-"बहुत अच्छा / " और अपने घर चले आये। - क्रमशः कृष्ण चतुर्दशी आ पहुँची। उस दिन रातके समय अकेले ही कुमार खड्ग लिये हुए स्मशान-भूमिमें आं पहुँचे। वहाँ पहुचनेपर योगीने उनसे कहा, "हे कुमार! रातको भय उत्पन्न होगा, इसलिये तुम मेरी और इन उत्तर-साधकोंकी रक्षा करना।” यह सुन, कुमारने कहा, "हे योगीन्द्र ! आप स्वस्थ चित्तसे मन्त्रकी साधना कीजिये। मेरे रक्षक रहते हुए आपके कार्यमें कौन विघ्न उत्पन्न कर सकता है ?" इसके बाद योगीने एक मण्डप बना कर उसमें एक मुर्दा ला रखा और उसके मुंहमें आग डाल, होम किया। योगी होम कर ही रहे थे, कि इसी समय सब दिशाओंको गुंजाती, आसमानको फाड़ती और दुनियाँके कान बहरे करती हुई एक बड़ी भारी कड़ाकेकी आवाज़ पैदा - हुई। इसी समय अकस्मात् ज़मीन फट गयी और उसके अन्दरसे एक भयङ्कर और यमराजकासा विकराल पुरुष प्रकट होकर बोला,-"रे . पापी! रे दिव्य स्त्रीका अभिलाषी! मैं मेघनाद नामका क्षेत्रपाल यहाँ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust