________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। arrrrnawwwwwwmaran और रजोहरण लिये हुए मुनिका रूप बनाये, हाथमें सांपकी पिटारी.. धारण किये, वहीं आ पहुँचा, जहाँ नागदत्त क्रीड़ा कर रहा था / उसी समय पासके ही रास्तेसे उसे जाते देख, नागदत्तने पूछा, - "हे गारुड़िक ! तुम्हारी इस पिटारी में क्या है ?' उसने कहा, “साँप है।" नागदत्तने कहा,- "तुम अपने साँपोंको बाहर निकालो। मैं तुम्हारे सौके साथ क्रीड़ा करूँगा और तुम मेरे सौके साथ क्रीड़ा करो।" इसके उत्तर में उस व्रतधारीने कहा,- “हे भद्र ! तुम मेरे सौके साथ. . क्रीड़ा करनेकी बात भी न करो ; क्योंकि मेरे साँको देवता भी नहीं छू सकते / फिर तुम मूर्ख बालक होकर मन्त्र वा औषधिको जाने विना ही मेरे सौके साथ किस प्रकार क्रीड़ा करोगे? " यह सुन, नागदत्तने कहा,- “तुम देखो तो सही, कि मैं किस तरह तुम्हारे सोको ग्रहण करता हूँ। पर पहले तुम मेरे इन सोको तो ग्रहण करो।" यह सुन उसने कहा,- “अच्छा, अपने साँपोंको छोड़ो।" नागदत्तने अपने साँपोंको छोड़ दिया; पर वे उसके शरीर पर नहीं चढ़े और एकाध बार चढ़कर डॅसा भी तो देवशक्तिके कारण उसके शरीरमें डंक नहीं व्याप सका। यह देख, नागदत्तने डाहके मारे कहा,- "हे गारुड़िक ! अब. देर न करो; तुम्हारे पास भी जितने सर्प हों, उन्हें छोड़ दो।" इसपर देवताने कहा,- “तुम पहले अपने सब स्वजनोंको इकट्ठा कर लो और राजाको साक्षी-रूपमें यहाँ बुलाओ, तो मैं अपने साँपोंको छोदूंगा / नहीं तो नहीं ? " नागदत्तने ऐसा ही किया / तब व्रतधारी गारुड़िकने ऊँचे स्वरसे कहा,- “हे भाइयो! सावधान होकर मेरी बातें सुनो / यह नागदत्त गन्धर्व मेरे सोके साथ क्रोड़ा करना चाहता है। इस: लिये यदि मेरे ये विषधर इसे डंस देंगे, तो आपलोग. मुझे दोष न देंगे।” यह सुनकर नागदत्तको उसके स्वजनोंने मना किया; तो भी उसने नहीं माना / इसी समय गारुड़िकने अपनी पिटारीमेंसे चार सप निकाल कर चारों दिशाओं में छोड़ दिये और कहा, मेरे ये सर्प बड़े क्रूर हैं / इन सर्पोके स्वरूप मैं तुमसे वर्णन किये देता हूँ सुनो, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust