________________ षष्ठ प्रस्ताव / भारी सौदागर रहते थे / वे दोनों ही शान्त, सुन्दर शीलवान्, अल्प कषायवान्. सरलचित्त और परस्पर मैत्री रखनेवाले थे। उनका एकही साथ कारवार चलता था। एक जो काम करता दूसरा भी वही काम करने लगता। उनका ऐसाही निश्चय था / एक दिन वे दोनों एक उद्यानमें गये। वहाँ सभामें बैठे हुए वज्रगुप्त नामक मुनिको धर्मदेशना देते देख, उन दोनोंने उन्हें शुद्ध भावसे प्रणाम किया और उनके पास बैठ, धर्म-कथा श्रवण कर, साधु-धर्मका प्रतिपालन कर, आयुके अंतमें संलेखना द्वारा मृत्युको प्राप्त हो, स्वर्ग चले गये। वहाँ भी उन दोनों देवोंमें परस्पर ऐसी ही प्रीति बनी रही। एक दिन स्वर्गमें रहतेही समय उन्होंने निश्चय किया, कि हम दोनोंमेंसे जो पहले स्वर्गसे नीचे आयेगा, उसे स्वर्गमें रहनेवाला दूसरा मित्र धर्ममें स्थापित करेगा / " ___ तदनन्तर कुछ समय बाद समुद्रदत्तका जीव स्वर्गसे च्युत हो 5 भरतक्षेत्रके धरा-निवास नामक नगरके सागरदत्त नामक व्यवहारीके घर, उसकी भार्या धनदत्ताको कोखमें नागकुमार देवताके वरदानसे, पुत्र-रूपसे अवतार ग्रहण किया / समय आनेपर माताने उसे प्रसव किया। मा-बापने उसका नाम नागदत्त रखा / क्रमसे समय पाकर वह बहत्तर कलाओंमें निपुण हुआ और गन्धर्व-कलामें विशेष अनुराग रखने लगा। इसीलिये वह संसारमें गन्धर्व नागदत्तके नामसे विख्यात हो गया। एक दिन वह वीणा बजानेमें चतुर और गारुड़ी विद्यामें निपुण पुरुष मित्रोंके साथ नगरके उद्यानमें क्रीड़ा करने गया। इतने में स्वर्गमें रहनेवाले वसुदत्तके जीवने उसे धर्मकी ओरसे ग़ाफ़िल देखकर पूर्वभवमें निश्चय किये हुए सङ्कल्पके अनुसार उसे तरह-तरहसे प्रति. घोध दिया, परन्तु जब उसे किसी तरह बोध न हुआ, तब उसने अपने मनमें विचार किया,-"यह बड़ी मौजमें है-पूरी तरह सुखी है / " इसलिये जब तक यह प्राण-संशयकारी सङ्कट में नहीं पड़ेगा, तबतक धर्ममें प्रवृत्ति नहीं होगा। " ऐसा विचार कर, वह देव, मुखवस्त्रिका P.P.AC.Gunratnasuri M.S. riM.S. Jun Gun Aaradhak Trust .