________________ 'षष्ट प्रस्ताव .. कनकवती बोलो,- "स्वामी ! अभी हमारी नयी जवानीकी उमर है। अभी व्रत किस लिये लेते हैं ? यह सुन, कुमारने कहा,- "कितनेही मनुष्योंको तो बुढ़ापे तक विषयोंकी अभिलाषा बनी रहती है और कोई जवानी में ही वैराग्य प्राप्त कर लेता है / " इसपर उसने कहा,"हे स्वामी ! इन परम ज्ञानी मुनिवरसे पूछकर पहले अपने मरणकी बात मालूम कर लीजिये / इसके बाद जैसा उचित अँचे, वैसा कीजियेगा।" यह सुन, कुमारने उसकी बात स्वीकार कर ली। . इसके बाद कुमार कुछ खाने-पीनेकी सामग्री लानेके लिये नगरमें गये और कनकवती अकेलीही वनमें रह गयी / इतनेमें गुणपुत्र नामक एक राजकुमार वहाँ आया। उसने उस वनमें अकेली पड़ी हुई उस युवती कनकवतीको देख, अनुरक्त होकर कहा,-- “हे भद्रे ! तुम कौन हो? और इस वनमें अकेली क्यों पड़ी हुई हो ? क्या तुम्हारे पति तु. म्हारे साथ नहीं हैं ? " यह सुनकर, उसने उसके हृदयका अनुराग ताड़ लिया और अपने पतिको संसारसे विरक्त हुआ जान, उससे सारा वृत्तान्त कह सुनाया / वह भो मन-ही-मन उसपर अनुराग करने लगी। जव गुणचन्द्रने अपने जीकी बात उससे कही, तब वह बोली,-"हे कामी ! मैं किसी उपायसे अपने स्वामीको मारकर तुम्हारे घर चली आऊँगी।" यह सुन, वह राजकुमार अपने घर चला गया। इधर गुणधर्मकुमारने नगरमें जा, जुएमें थोड़ा बहुत धन जीत, उसीसे आटा वगैरह खरीदा और भोजन बनाकर प्रियाके साथ खाया। इसके बाद कुछ विचार करती और पृथ्वीपर चिह्न बैंचती हुई कनकवतीको देखकर कुमारने उसकी चाल-ढालसे मालूम कर लिया, कि इसके मनमें किसी पराये पुरुषकी इच्छा उत्पन्न हुई है / यही सोचकर वे वहाँसे उठ खड़े हुए और संभ्रान्तचित्तसे वनमें घूमने लगे / इतनेमें किसीने आकर उनसे पूछा,- “हे भाई ! क्या अबतक राजपुत्र वनमें ही हैं ? " गुणधर्मने पूछा,-"कौनसा राजपुत्र ?" उसने कहा, "गुणचन्द्र नामक राजकुमार यहाँ आकर एक नौजवान स्त्रीसे बातें करने में . P.PAGunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust