________________ षष्ठ प्रस्ताव। 263 . अर्थात्-'अहो ! यह सूर्य पहले उदयको प्राप्त हो, अपने प्रतापका विस्तार कर, इस समय तेजहीन होकर अस्ताचलको जारहा है।' - यह सुन, कुमार सन्ध्याकालके कृत्य कर, सुखनिद्रामें रात बिता दी। प्रातःकाल काल-निवेदकने फिर कहा, "निहतप्रतिपक्षोऽसौ, सर्वेपामुपकारकृत् / उदयं याति तीग्मांशु-रन्योऽप्येवं प्रतापवान् // 1 // ". अर्थात्---"अन्धकार--रूपी शत्रुका नाश करनेवाला और सबका उपकार करनेवाला यह सूर्य उदयको प्राप्त हो रहा है / इसी प्रकार दूसरे लोग भी, जो प्रतापी होते हैं, उदयको प्राप्त होते हैं।" ___ उसके ऐसे वचन सुन, गुणधर्मकुमार प्रातःकालके कृत्य कर, परिवार सहित भैरवाचार्यके पास आये। वहाँ बाघके चमड़ेपर बैठे हुए योगीको देखकर कुमारने पृथ्वीमें माथा टेककर भक्ति-पूर्वक उनको नमस्कार किया। उसी समय योगीन्द्रने बड़े आदरके साथ उन्हें आसन दिखलाते हुए कहा,-"तुम उसी पर बैठो।” उनके ऐसा कहने पर भी कुमारने विनयके साथ कहा,-" हे पूज्य ! मेरे लिये यह उचित नहीं है, कि मैं गुरुके समान आसन पर बैलूं।" यह कह, अपने सेवकके उत्तरीय वस्त्रपर बैठते हुए उन्होंने कहा,---“हे प्रभो! आपने इस नगरमें आकर मुझे कृतार्थ कर दिया / " यह सुन, योगीन्द्रने कहा, "हे कुमार! तुम मेरे सब प्रकारसे माननीय हो; परन्तु मैं अकिञ्चन मनुष्य ठहरा, अतएव किस प्रकार तुम्हारा स्वागत सत्कार करूँ ?' यह सुन कुमारने कहा, "हे पूज्य ! आपका आशीर्वादही मेरा सत्कार है। आपके दर्शनोंसे ही मेरे सारे मनोरथ सिद्ध हो गये।" यह सुन योगीन्द्रने फिर कहा, "हे कुमार ! तुमने बहुत ही ठीक कहा ; पर लोकोक्ति तो यही कहती है, कि "भक्तिः प्रेम प्रियालापः, सम्मानं विनयस्तथा / साल.. ... ....... प्रदानेन बिना लोके, सर्वमेतन्न शोभते // 11 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust