________________ षष्ठ प्रस्ताव गिरा, यह मुझे याद नहीं है।" तब कुमारने कहा, "मुझसे एक दूसरे आदमीने कहा, कि तुम्हारी पत्नी कहीं दूर गई हुई थी, वहाँ उसका एक नूपुर गिर गया है / जय उसने मुझसे ऐसा कहा, तब मैंने उस आदमीसे जबरदस्ती वह नपुर छीन लिया, जिसने उसे ले रखा था / " * यह सुन, कनकवतीने आने मनमें विचार किया,-"अवश्यहो किसी-न. किसी तरकीब से मेरे पति मेरा सारा हाल जान गये है, क्योंकिi. . . 'ज्ञौरभद्रं कला चान्द्री, चौरिका क्रीडितानि च / ...... ...... प्रफलानि तृतीयेऽहनि, स्युर छन्नं सुकृपानि च // 1 // . अर्थात- 'गुप्त रीतिसे किया हुअा क्षौरकर्म, चन्द्रमा की कला, चोरी; क्रीड़ा और गय--ो सब तीसरे दिन प्रकट हो जाते हैं ... ...... यही सोचकर उसने फिर कर',-"4:मो ! मेरा वहमपुर कहाँ है?". यह सुन, कुगारके देशसे उन मित्रो वह नार उसे दे दिया। उसे लेकर उसने फिर कहा,-"प्यारे ! सच कहना, यानपुर तुम्हें कहाँ मिला?" कुमारने कहा,-"तुमने इसे कहाँ गिराया था .?" . उसने पूछा, “यह जहाँ गिरा था, वह स्थान तुमन देवा है या नहीं ?" यह सुन, कुमारने कुछ उटपटा जवाब दे दिया। तब यह योलो,–“हे स्वामी! यदि यह स्थान तुमने देखा है, तब तो ठोक है, नहीं तो अग्निमें प्रवेशकरने' . पर भी मेरी शुद्धि होने को नहीं।" यह कह, धनकयती गायों हथेली पर गरंदन रेख, चिनातुर होकर क्षणभर नीचा सिर किये रही। इसके : याद नरह-तरह की हँसीको बातें कर, उसे खुश करते हुए कुमार अपने . घर गये। फिर रात के समय कुमार वहाँ उसी प्रकार आ पहुँचे। उस समय उसकी संखोने उससे कहा, - "स्वामिना! वहाँ जानेका समय तो.. हो गया, चलिये, नहीं तो देर होनेसे वह विद्याधर कोधित हो जायेगा। यह सुन, उसने लम्बी साँस लेकर कहा, "सखी!..अब मामला: बड़ा गड़बड़ हो गया है। अब मैं अभागिनी क्या करूँ पारेगनमें ही, जब मैं अपने पितांके घर थीं, तभी उस विद्याधरने मुझे सौगन्ध देकर कहा-धा, कि जबतक मैं आशा न दूतसकतुन भने पति की सेवा P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust