________________ :: षष्ठ प्रस्ताव। ... VvvNA “खेचरो! तुम लोग श्रीऋषभस्वामीको स्नान कराओ। मैं इस पापिनकी पूरी-पूरी ख़बर लेता हूँ।" यह कह, उसने उस दासोके केश पकड़ लिये और इधर कुमारने भी (अदृश्य रूपमें ही) कमर कसकर नङ्गी तलपार निकालो। उसी समय नाटकका रंग-भंग हो गया। विद्याधरने कहा,-"दासी! मैं पहले तेरे ही खूनसे अपने क्रोधकी आग ठंढी करूँगा। इसके यादः जो उचित मालूम पड़ेगा, वह करूंगा। इसलिये मौतकी . घड़ी पहुँची जानकर तू अपने इष्ट देवको याद कर ले और जिसकी शरण लेनी चाहे, ले ले।" यह सुन, वह बोली,-"तीनों जगत्के पूज्य देवाधिदेवः श्रीजिनेश्वर मेरे इष्टदेवता हैं। मैं उन्हीं को याद करती है और हे विद्याधरेन्द्र ! इस वनमें तो मृत्युही मेरी शरण है , क्योंकि यहाँ मेरी: रक्षा करनेवाला कोई नहीं है। तो भी मैं कहती है कि जो शूर-वीरोंमें शिरोमणि हैं, जो महाउदार और शत्रु-गज-केशरी हैं, वे ही धीर गुणधमकुमार नामक आर्यपुत्र मेरी शरण हैं।" यह सुन, खेचरेन्द्रने कहा,-- "अरे ! तेरा वह आर्यपुत्र कौन है ?" उसका यह प्रश्न सुन, कुमारने अपने मनमें सोचा,-"विद्याधरका यह प्रश्न तो बहुत ही ठीक है , क्योंकि मेरे मनमें भी बड़ी शङ्का हो रही है।" तब उस दासीने कहा,-"सब... राजाओंके सामने जिनको मेरी स्वामिनीने स्वयंघरमें वरण किया है और जिनकी मार खाकर तू पापी क्षणभर भी खड़ा नहीं रह सकता, उन्हीं गुणधर्मकुमारकी मैं शरणमें हूँ।" उसकी यह बात सुन, अत्यन्तः . क्रोधान्ध होकर, यह विद्याधर ज्योंही तलवारं उठाकर उसे मारनेको तैयार हुआ, त्योंही कुमार नंगी तलवार लिये प्रकट होकर बोले,-रे दुष्ट ! सुन ले। जो पापी, विश्वासी, व्याकुल, दोन, बाल, वृद्ध और स्लीपर हाथ उठाता है, वह अवश्यहो दुिितको प्राप्त होता है / इसीलिये : हे दुध! तुभास्त्री-हत्याके लिये तैयार हुए पापीको दण्ड देनेके ही लिये, मैं: तेरा गुरु यहाँ आ पहुँचा हूँ।" यह सुन, उस विद्याधरने हंसकर कहा, "मैं तुझे वहाँ जाकर मारता, इससे तो यही अच्छा हुआ, कि यहीं मरने के लिये चला पाया / . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust