________________ રંકરે mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm श्रीशान्तिनाथ चरित्र / wwwmmmmmmmmmmron. ____ इसी प्रकार कुछ देर तक उसके साथ हँसी-दिल्लगी कर, गुणधर्मकुमार अपने घर आये और स्नान, भोजन, अंग-लेप आदि करके शान्तिपूर्वक अपनी जगह पर बैठे हुए थे, इसी समय प्रतिहारने आकर कहा,-, "हे स्वामी! आपके महलके दरवाजेपर एक साधु आपके दर्शनोंकी इच्छासे आया हुआ है। यदि आपकी आज्ञा हो, तो मैं उसे भीतर बुला लाऊँ।" कुमारने कहा,-"बुला लाओ।" यह सुन, प्रतिहार उस साधुको बुला लाया। कुमारने साधुका बड़े विनयके साथ स्वागत किया। सच है, कुलीन मनुष्योंका यही स्वभाव है। कहा है, 'को चित्तइ मयूरं, गई च को कुणइ रायहंसाणं / को कुवलयाण गंधं, विणयं च कुलप्पसूयाणं // 1 // अर्थात्- "मयूरको कौन चित्रित करता है ? राजहंसोंको मनोहर गति किसने सिखलायीं ? कमलमें सुगन्ध किसने पैदा की ? और ऊँचे कुलमें उत्पन्न हुए मनुष्यको विनयी कौन बनाता है ?"--अर्थात् यह सब स्वभावसे ही होता है / .' कुमारने उप्ले आसन दिया; पर वह अपने काष्ठासनपर ही बैठ रहा। इसके बाद राजकुमारने उसे प्रणाम कर उससे यहाँ आनेका कारण पूछा। इसपर उसने कहा, "हे भद्र ! मेरे आचार्य भैरवने मुझे आपके पास आपको बुला लानेके लिये भेजा है। उनको आपसे क्या काम है, यह मैं नहीं जानता।" यह सुन, कुमारने पूछा, "हे मुनि! भैरवाचार्य कहाँ हैं ?" उसने कहा, "वे नगरके बाहर एक स्थानमें टिके हुए हैं।" कुमारने कहा, "मैं प्रातः काल उनके पास जाऊँगा।" यह सुन, वह तपस्वी 'बहुत अच्छा' कहकर अपने स्थानको चला गया। इसी समय कालका ज्ञान करानेवाले अधिकारी पुरुषने इस प्रकार कहा, "अयं प्राप्योदयं पूर्व, स्वप्रतापं वितत्य च / गततेजा अहो संप्र-त्यस्तं याति दिवाकरः // 1 // " P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust