________________ षष्ठ प्रस्ताव / ' कटु, अति तीक्ष्ण और अति अम्ल (खट्टे ) पदार्थ खाना छोड़ दिया और गर्भको लाभ पहुंचाने वाले पथ्य और गुणकारक पदार्थ खाना * शुरू किया। स्वामीके गर्भ में आनेके पहले उस नगरमें महामारी आदि उपद्रवसे यहुतेरे लोग मर रहे थे। अब ज्योंज्यो गर्भ बढ़ने लगा, स्यों-स्यो महामारी आदि बीमारियों नष्ट होती गयीं और सारे नगरमें शान्ति फैल गयी / इससे स्वामीके माता-पिताने सोचा,-"यह जो महामारी आदिके उपद्रव शान्त होकर सर्वत्र शान्ति फैल गयी है, वह इसी गर्भस्थ बालकका प्रताप है। इसके बाद गर्भके प्रभावसे जिन-जिन अच्छी-अच्छी . चीज़ोंकी चाहना रानीको हुई, उसकी राजा विश्वसेनने भी भलीभौति पूर्तिकर दी। क्रमसे नौ महीने साढ़े सात दिन बीतनेपर जेठ, . महीने की कृष्ण चतुर्दशीकी रातको, जिस समय चन्द्रमा भरणी नक्षत्र और मेष राशिमें था, सूर्यादिक ग्रह उच्चाति-उच्चतर स्थानोंमें थे, उसी शुभ लग्नमें, अनुकूल तथा धूलरहित वायुका जिस समय मन्द मन्द प्रवाह फैल रहा था, उसी शुभ मुहूर्तमें अचिरा देवोने, अपनी सुवर्णकीसी कान्तिसे भव-भ्रमणको निवारण करनेघाला, पवित्र-चरित्रवाला और तीनों लोकको सुख देनेवाला सुपुत्र सुखसे प्रसव किया। .. ... उसी समय छप्पन दिक्कुमारियाँ, अवधिशानसे जिनेश्वरके जन्मके वृत्तान्त जानकर तत्काल वहाँ आ पहुँची। उनमें अधोलोकके गजदन्तगिरिकी कन्दरामें रहनेवाली आठ कुमारियाँ, ऊर्ध्वलोकके मेरुपर्वतपर नन्दन-वनमें रहनेवाली आठ कुमारिकाएँ, रुचक-पर्वतकी चारों दिशाओं में रहनेवाली आठ-आठ कुमारिकाएँ, रुचक-पर्वतकी चारों विदिशाओं में रहनेवाली चार कुमारिकाएँ तथा मध्यमरुचक-द्वीपमें रहने. वाली चार कुमारिकाएँ थीं। इस प्रकार सब मिलकर उप्पन कुमारिकाएँ यहाँ आयीं। पूर्वोक्त अधोलोक-निवासिनी आठों कुमारिकाओंने संवर्तक नामक वायु चलाकर भूमिको साफ़ कर दिया। मेरु. पर्वतके नन्दन-धनमें रहनेवाली, आठों कुमारिकाओंने गन्धादिककीवर्षा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust