________________ र . षष्ठ प्रस्ताव। उसके चारों ओर चार मनोहर सिंहासन रखे गये। जिनमें प्रत्येक पर तीन-तीन छत्र और दो-दो चैवर लगाये गये। यह सब व्यन्तर-देवता ओने बनाया था। .: ___इसके बाद श्रीजिनेश्वर, उस समवसरणके पूरवी दरवाजेसे भीतर जा, तीर्थको नमस्कार कर प्रसन्नमुखसे पूर्व दिशामें रखे हुए सिंहासन पर पूरबकी ओर मुँह किये हुए बैठ रहे। इसी समय बाकीके तीनों सिंहासनों पर देवोंने प्रभुके तीन विम्ब बैठा दिये / प्रभुके पीछे प्रभामण्डल चमकने लगा और सामने घुटने घराबर डंठल समेत फूलों की वर्षा हो गयी। यह सब भी व्यन्तर देवोंने ही किया। इसी समय आकाशमें देव-दुन्दुभि बजने लगी और अन्यान्य बाजों के भी शब्द सुनाई देने लगे। - उस समवसरणमें बारह परिषदे बैठी थीं, जिनका ध्योरा इस प्रकार है- पहली साधुओंकी सभा थी, जो कि पहले गढ़के मध्यमें पूर्वदिशावाले द्वारसे प्रवेशकर अग्निकोणमें बैठी हुई थी। इसके पीछे साध्वियोंकी सभा और उसके पीछे वैमानिक देवियोंकी समा थी। दक्षिण दिशासे प्रवेश कर नैऋत्य-कोणमें जाने पर पहले ज्योतिषी देवि. पोंकी सभा उसके पीछे भुवनपति देवियोंकी सभा और उसके पीछे व्यन्तर देवियों की सभा थी। पश्चिम दिशासे प्रवेश करने पर वायव्यकोणमें पहले ज्योतिष्क देवोंकी सभा, उसके पीछे भुवनपति देवोंकी सभा और उसके पीछे व्यन्तर देवों की सभा मिलती थी। उत्तर दिशासे प्रवेश करने पर ईशानकोणमें पहले चैमानिक देवोंकी सभा, उसके बाद मनुष्य-पुरुषोंकी सभा और उसके पीछे मनुष्य-त्रियोंकी सभा बैठी ' मिलती थी। ऐसी ही वे बारहों परिषदें थीं। दूसरे गढ़में चारों विदिशाओंमें परस्परका जातीय र त्यागकर, सब प्रकारके तिर्यंच जीव बैठे. हुए थे और तीसरे गढ़के भीतर सब तरहके वाहन मौजूद थे। इस प्रकार संक्षेपमें उस समवसरणकी स्थिति जान लो। . इसी समय कल्याण नामक पुरुषने चक्रायुध राजाके पास माफर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust