________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / 284 terrero.yammanmmmmmrammam चाँदी, लोहा, मणि और प्रबालोंको उत्पत्ति होती है। आठवीं माणवक- . निधिमें समस्त युद्ध-नीति समप्र आयुध और वीरोंके योग्य बखतरआदिका समूह होता है। और नवीं शंखक-निधिमें सब तरहके बाजों और काव्य, नाट्य . और नाटकोंकी विधि होती है। प्रत्येक निधिके एक पल्योपमकी आयुवाले और उसी निधिके नामसे प्रसिद्ध हज़ार-हज़ार देवता अधिष्ठाता होते हैं। . निधानोंको स्वाधीन कर, चक्रीने गङ्गाके पूर्वीय तटके प्रदेशको भी इसी तरह वशमें कर लिया। इस प्रकार स्वामीने भारतके छहों खण्डों पर आधिपत्य विस्तार कर, सब दिशाओंको जीतकर अपने हस्तिनापुर नगरमें बड़ी धूम-धामसे प्रवेश किया। इसके बाद बत्तीस हज़ार मुकुटधारी राजाओंने बारह वर्ष पर्यन्त स्वामीके चक्रवत्तींके अभिषेकका महोत्सव मनाया। बारह वर्ष बाद महोत्सवकी समाप्ति होनेपर प्रत्येक राजाने स्वामीको बहुत सा धन दिया और साथ ही दो-दो कन्याएँ भी दीं। इस तरह स्वामीको रूप और लावण्यसे शोभित देवाङ्गनाके समान चौंसठ हज़ार पत्नियाँ हो गयीं। प्रभुके सेनापति आदि चौदहों। रत्न हज़ार-हज़ार यक्षोंसे अधिष्ठित थे। उनके चौरासी लाख हाथी, * चौरासी लाख घोड़े, और इतने ही शस्त्रोंसे भरे हुए ध्वजाङ्कित रथ भी थे। उनके परम समृद्धिशाली नगरोंकी संख्या बहत्तर हज़ार थी। उनके 66 करोड़ गांव और इतनेही पैदल सिपाही थे बत्तीस हज़ार देश और इतनेही राजागण उनके अधीन थे। बीस हज़ार बत्तीस नाटक और रत्नोंकी खाने और अड़तालीस हज़ार नगर उनके अधीन थे। इस प्रकार बहुत बड़ी समृद्धि पाकर, चक्रवर्तीकी उपाधि प्राप्त कर, सुख भोगते हुए स्वामीने पच्चीस हज़ार वर्ष बिता दिये। ___एक समयकी बात है, कि ब्रह्मदेवलोकके अरिष्ट नामक प्रतरमें रहनेवाले सारस्वत आदि लोकान्तिक देवोंके आसन हिल गये। उसी समय अवधिज्ञानसे प्रभुकी दीक्षाका समय आया जानकर वे मनुष्यलोकमें आये और वन्दी-जनोंकी भाँति जय-जयकी ध्वनि करते हुए . उन्होंने प्रभुकी इस प्रकार विनती की,-"हे प्रभु! बोध प्राप्तकर * P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust