________________ M श्रीशान्तिनाथ चरित्र। . की और रुचक-गिरिकी पूर्व दिशाकी आठों कुमारिकाएँ हाथमें आरसी लिये जिनेश्वरकी माताके पास खड़ी रहीं। दक्षिण दिशाकी आठों कुमारिकाएँ पानीकी झारियां लिये खड़ी हो रहीं। पश्चिम / दिशाकी आठों कुमारिकाएँ पंखे लिये खड़ी हो गयी और उत्तर दिशाकी आठों कुमारिकाएँ चघर डुलाने लगीं। रुचक-गिरिकी विदिशामें रहनेवाली चारों कुमारिकाएँ दीपिकाएं धारण किये खड़ी हो गयी और रुचक-द्वीपमें रहनेवाली चारों कुमारिकाओंने रक्षाबन्धन आदि सूतिकाके कार्य किये। इसी समय शक्र इन्द्रका निश्चल आसन चलायमान हो गया। उसी समय देवेन्द्रने, अवधि-ज्ञानसे जिनेश्वरका जन्म हुआ जानकर, तत्क्षण पदातिसैन्यके अधिपति नैगमेषीदेवको आज्ञा देकर सुधोषा नामक घंटा बजाते हुए सब देवताओंको ख़बर दिलवायी / उसी समय सब देवता तैयार होकर देवराज इन्द्रके पास आये। इसके बाद इन्द्रने पालक देव से उत्तम विमान तैयार करवाया और परिवार सहित उस पर सवार हो, श्रेष्ठ शृङ्गार किये हुए तीर्थङ्करके जन्म-गृहमें चले आये / यहाँ आ स्वामीको प्रणाम कर, उनकी स्तुति कर, माताको विशेष रूपसे नमस्कार कर, उन्हें अवस्वापिनी निद्रा दे, प्रभुका मायामय प्रतिबिम्ब माताके समीप स्थापित किया / इसके बाद इन्द्रने अपने पाँच स्वरूप बनाये-एक स्वरूपसे उन्होंने जिनेश्वरको दोनों हाथमें लिया, दूसरे रूपसे छत्र धारण किया, तीसरे और चौथे रूपोंसे चँवर डुलाने लगे और पांचवें रूपसे वन उछालते हुए आगे चले / इसी तरह चलते हुए घे मेरुपर्वतके शिस्त्रर पर पहुँचे / उसी समय अन्य तिरसठ इन्द्र भी अपने-अपने परिवारके साथ वहाँ आ पहुँचे / तदनन्तर मेरु-पर्वतके शिखर पर अतिपाण्डकवला नामकी शिलापर शाश्वत आसन मारे / बैठे हुए सौधर्म-इन्द्र श्रीजिनेश्वरको अपनी गोदमें लेकर बैठ रहे और अच्युतेन्द्र आदि देवेंद्रोंने सोने, चांदी, मणि, काष्ठ और मिट्टीके अनेकानेक कलशोंमें तीर्थोंके जल भर कर बड़े हर्ष के साथ श्रीजिनेश्वरका P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust