________________ षष्ठ प्रस्ताव। . 276 अभिषेक किया। इसके बाद सौधर्म इन्द्रने श्रीजिनेश्वरको अच्युतेन्द्रकी गोदमें रख दिया और त्रिभुवन-स्वामीको पवित्र स्नान करा, उनका समस्त शरीर उत्तमोत्तम वस्त्रोंसे पोंछ, चन्दनादिका विलेपन कर, हरि. चन्दन और पारिजातके सुगन्धित पुष्पोंसे उनकी पूजा कर, चक्षुदोषके निवारणके लिये राई-लोन वारकर, तीर्थङ्करको प्रणाम कर, भक्तिपूर्वक उनकी इस प्रकार स्तुति की, "हे अचिरादेवीकी कोख-रूपी पृथ्वीके कल्पवृक्षके समान, मध्य प्राणी रूपी कमलोंको खिलानेके लिये सूर्यके समान और कल्याणका समूह देनेवाले स्वामी ! तुम्हारी जय हो। इस प्रकार उदार वचनोंसे तीर्थङ्करकी स्तुति कर सौधर्म इन्द्रने प्रभुको उनके घर पहुंचा दिया और उन्हें माताके पास सुलाकर, सयके सामने ही कहा,-"जो कोई जिनेश्वर या इनकी माताकी बुराई करनेका विचार करेगा, उसका सिर गर्मी के दिनमें एरण्डके फलकी तरह तत्काल कट जायेगा। इसके बाद इन्द्र नन्दीश्वर छीपको चले गये। वहां अन्यान्य इन्द्र भी मेरुपर्वतसे घूमते-घामते बिना बोलाये चले आये थे। घहीं उन लोगोंने अष्टाह्निक उत्सव किया और उसके बाद अपनी-अपनी जगह पर चले गये। दिक्कुमारियाँ भी अपने-अपने घर चली गयीं। इधर अचिरादेवीकी नींद रातके पिछले पहर टूटी। उस समय उनके शरीरकी सेवा करनेवाली दासियां अपनी स्वामिनीको पुत्र सहित देखकर हर्षित तथा विस्मित हुई। "मैं ही पहले पहुँचूँ।" यही सोचती हुई सब-की-सब जल्दी जल्दो राजाके पास बधाई देने आयीं और बोली,--- "हे महाराज ! इस पुत्रकी दाई का काम दिक्कुमारियोंने आकर किया है और देवेन्द्रोंने स्वामीको मेरु-पर्वत पर ले जाकर वहीं इनका जन्माभि.. षेक महोत्सव सम्पन्न किया है। हम लोगों को यह बात देवताओं की जुबानी मालूम हुई है।" यह बात सुनते ही राजा विश्वसेन मेघकी धारासे सिंचे हुए कदम्ब-वृनकी भांति रोमाञ्चित हो गये और उन्होंने उन दासियों को हर्षके मारे मुकुटके सिवा अपने सब अङ्गोंके गहने उतार P.P.AC. Gunratnasuri M.S. C. Jun Gun Aaradhak Trust