________________ पञ्चम प्रस्ताव / 247 किसीसे यह बीमारी नहीं दूर होने की।” राजाको यह बात सुन, वत्सराजने अपनी मासीके पास जाकर बड़े आग्रहसे कहा,-"माता ! यह व्यर्थकी हठ छोड़ो और खाओ-पियो / : मैं घाघरा ढूँढ़ कर ला दूंगा।' पर उनके ऐसा कहने पर भी स्त्री-स्वभावके कारण रानीने हठ नहीं छोड़ा। तब वत्सराजने उनके सामने ही यह कठिन प्रतिज्ञा की,“यदि मैं छः महीनेके अन्दर तुम्हारे इच्छानुसार वस्त्र न ला दूं, तो आगमें / जल मरूंगा।" उनकी यह बात सुन, राजाने कहा,-"बेटा! ऐसी भयङ्कर प्रतिज्ञा न करो।" इसपर वत्सराजने कहा,-"आपकी दयासे सब भला ही होगा। अब मुझे जल्दीसे देशान्तर जानेकी आशा दी. जिये।" राजाने उनके साहससे प्रसन्न होकर उन्हें अपने हाथसे पानका बीड़ा दिया और परदेश जानेकी आज्ञा दे दी। इसके बाद वत्सराज अपने घर गये और अपनी माता तथा मासीके चरणों में प्रणाम कर, उनसे सारा हाल सुनाकर, उनसे भी आज्ञा मांगी। यह सुन, उन्होंने इच्छा न रहते हुए और पुत्रको कष्ट होगा, इस बातको सोचते हुए भी दीर्घबुद्धिसे विचार किया,-'पुत्र! तुम सानन्द चले जाओ। तुम्हारी विजय होगी।' इस प्रकार दोनों माताओंका आशीर्वाद सिर पर चढ़ा, राह-खर्चके लिये कुछ सामान साथ ले, ढाल-तलवार लगाये, वत्सराज नगरसे बाहर हुए। . इसके बाद वत्सराज, दक्षिण दशिाकी ओर गये और बहुतसे गांवों और नगरोंको देखते हुए एक घने जङ्गल में पहुँचे। वहाँ ऊँचे किलेवाले, पर निर्जनके समान एक छोटासा गाँव देख, वत्सराजने सोचा,-"क्या यह भूतोंका नगर है ? अथवा * यक्षराक्षसोंका नगर है ? अथवा यह विचार किस लिये करना ? अन्दर ही चलकर देखना चाहिये / " ऐसा विचार कर, वे ज्योंही गांवके अन्दर गये, त्योंही उन्हें उस गाँवमें एक बड़ा भारी सुन्दर मन्दिर दिखाई दिया और उसके पासही और भी बहुतसे छोटे-छोट घर नज़र आये। क्रमसे आगे जाते-जाते बहुतसे आदमियोंके बीचमें बैठा हुआ एक उत्तम पुरुष दूरसे ही दिखाई दिया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust