________________ ........................... 268 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / लोगों का अनुराग होता है; अनुराग वालेको सहायक भी बहुत मिल जाते हैं और जिसके सहायक हैं, उसे लक्ष्मी प्राप्त होती ही हैं। - "इसलिये हे राजन् ! एक महीने तक आप उसके आनेकी राह देखिये- उतावलेपनसे काम नहीं बनेगा। यह कह, मन्त्रियोंने राजा. को रोक दिया। इसके याद क्रमसे वह महीना बीत गया / तब कामसे अन्धे बने हुए राजाने अपने चार मन्त्रियोंको वत्सराजकी स्त्रियोंको ले आनेकी आशा दी / जब तक वे राजाके हुक्मकी तामील करनेके लिये वत्सराजके घर पहुँचे-पहुँचें, तबतक वत्सराजकी दोनों स्त्रियोंने अपने यक्ष-रूपी किंकरको भेजकर पातालमेंसे अपने पिताको, जो व्यन्तरेन्द्र हो गये थे, बुलवा लिया / व्यन्तरेन्द्र, सारा हाल सुन, दामादके शत्रुओंका नाश करनेके इरादेसे, देवशक्तिके द्वारा मनोहर और बड़े दामोंवाले आभूषणोंसे भूषित वत्सराजका रूप धारण कर, घोड़े पर सवार हो, एक देव-रूपी सेवकको साथ ले, सबके सामने राजमार्गले होते हुए / राजदरबारमें आये / यह देख, राजा अचम्भेमें आकर सोचने लगे,"यह वत्सराज मेरी आँखोंके सामनेही अग्निमें प्रवेश कर, मृत्युको प्राप्त हुआ था, फिर यह कहाँसे आ टपका : इस धीर पुरुषने तो इस सुभाषितको भी झूठ साबित कर दिया, कि 'पुनर्दिया पुना रात्रिः, पुनः सूर्यः पुनः शशीः / . पुनः संजायते सवं, न कोऽप्येति पुनर्मृतः // 1 // ' . अर्थात्-'फिर दिन होता है, फिर रात होती है, फिर सूर्य उदय होते है,, चाँद उगता है, .सब चीजें फिर होती हैं, पर मरा हुआ आदमी फिर नहीं लौटता।' ..... . . ऐसा विचार कर राजाने बड़े आश्चर्यके साथ उनसे पूछा,-"वत्स- - राज! यमराज कुशलसे है न?" इसपर उन्होंने कहा,-"नाथ ! आपके मित्र यमराज ख व कुशलसे हैं / उन्होंने मुझसे पूछा, कि क्यों वत्सराज ! तुम्हारे स्वामीके साथ मेरी इतनी गहरी दोस्ती है- तो भी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust