________________ पञ्चम प्रस्ताव / और घर जाकर अपनी पत्नियोंसे इसका हाल कह सुनाया / इसपर उन स्त्रियोंने कहा, "इस निर्दयी और कृतघ्न राजाकी आज्ञा तुमने क्यों स्वीकार कर ली? जैसे औरोंने नाही कर दी थी, वैसेही तुम भी इन्कार कर देते। उनके ऐसा कहने पर भी वत्सराजने उस कामसे हाथ न खींचा। तब उन दोनों स्त्रियोंने वत्सराजको घरमें ही छिपाकर रख दिया और अपने यक्ष रूपी दासको आज्ञा दी,—“हे यक्ष ! तुम मेरे पतिका रूप धारणकर, राजाके पास जाओ और वह जो काम करनेको कहें, उसे कर लाओ।” यह सुन, उस यक्षने वत्सराजका रूप धारण कर, राजाके पास आकर कहा,--"महाराज ! जो काम हो, वह बतलाइये।" राजाने कहा,-"वत्सराज ! तुम यमराजको बड़े आग्रहसे निमन्त्रण देना और उन्हें लिये हुए एक महीनेके अन्दर यहाँ चले आना / " यह सुन, नगरके बाहर आ, राजा, मन्त्री और अन्यान्य नगर-निवासियोंके सामने ही वह आगवाली खाई में कूदकर क्षण भरमें अदृश्य हो गया / उस समय वत्सराजको आगमें घुसते देख, सब लोगोंके मनमें बड़ा शोक हुआ और वे अकस्मात् कह उठे,-"ओह ! हमारे राजा भी कैसे निर्दय हैं, जो इन्होंने ऐसे गुण-रत्नोंसे भरे हुए वत्सराजकुमारको मार डाला। इनका हरगिज़ भला न होगा।” यही कह-कह कर लोग शोक करने लगे। पर राजाको तो यही सोच-सोचकर आनन्द होने लगा, कि अबके मेरा काम बन गया। इसके बाद राजाने मन्त्रियोंसे कहा,-"मन्त्रियो ! अब तुम उसकी त्रियोंको मेरे घर ले आओ-देर न करो।" यह सुन मन्त्रियोंने कहा,"हे महाराज ! सारी प्रजा इस समय आपसे फिरन्ट हो रही है, इस लिये अभी ऐसा करनेसे यह और भी विरक्त हो जायेगी / प्रजाकी / प्रीति बिना संपत्ति नहीं प्राप्त होती / कहा है, कि विनयेन भवति गुणवान्, गुणवति लोकोऽनुरज्यते सकलः / / - अनुरक्तस्य सहाया, ससहायो युज्यते लक्ष्म्या // 1 // ' .... अर्थात्-'राजा विनयसे गणवान् होता है, : गुणवान् पर सब P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust