________________ पञ्चम प्रस्ताष / / लीजिये। यह कह, वत्सराजने उसका कान छोड़ दिया। बस, छुटते ही वह बाधिन, राजाको दुष्टबुद्धि देनेवाले मन्त्रियों को पकड़-पकड़ कर खाने लगी। यह देख, राजाको बड़ा भय हुआ और वे घबराकर बोले,-"अरे वत्सराज! भाई वत्सराज ! ऐसा हिंसक कार्य न करोइसे पकड़ लो। मुझे इसके दूधका कोई काम नहीं है। यह तो मुझे और अन्य लोगोंको भी खा जाया चाहती है।" राजाकी ऐसी दीनता भरी बातें सुन, वत्सराज उसको कान पकड़े हुए अपने घर ले गये / यहाँ उनकी स्त्रियोंने उस देवीकी बड़ी भक्ति की। इसके बाद वह देवी खुशी. खुशी अपने घर चली गयी। . . . . . - इसके बाद वत्सराजकी पलियोंके सङ्गमकी इच्छा रखनेवाले राजाने फिर मस्त्रियोंके साथ सलाह कर,वत्सराजसे कहा, "भाई ! तुम कहींसे मेरे लिये बोलता हुआ पानी ले आओ। इससे मेरे शरीरकी व्याधि दूर होगी, ऐसा वैद्योंने बतलाया है।" यह सुन वत्सराजने पूछा,-"वह पानी कहाँ मिलता है ?" तब मन्त्रियोंने कहा, "विन्ध्य नामक वनमें दो पर्वतोके बीचमें एक कुआँ है। उसका.पानी बोलता है। परन्तु उन दोनों पर्वतोंका आँखकी पिपनियोंकी (पलकोंकी) तरह प्रत्येक क्षण संयोग-वियोग हुआ करता है। इसी लिये मौका देखकर बड़ी सावधानीके साथ उनके बीच में घुसकर पानी लेकर निकल आना चाहिये। कहीं ज़रा भी देर हुई, तो दोनों पर्वतोंके बीचमें दब जानेका हर है / इसलिये देखना, तुम बड़ी होशियारीके साथ उन पर्वतोंके बीच में प्रवेश करना और बाहर निकलना / तुम्हारे सिवा और किसीसे यह काम नहीं होनेका / " यह सुन, वत्सराजने उन का यह आदेश भी स्वीकार कर लिया और घर आकर अपनी स्त्रियोंसे इसका हाल कह सुनाया। - सुनकर उन दोनोंने कहा, "हे स्वामी! तुम इसी दैवी अश्वपर चढ़ कर जाओ। वहाँ हमारी सखी, जो एक देवी है शकुनिकाका रूप धारण किये रहती है, तुम्हें पानी ला देगी।" यह सुन, वत्सराज उसी समय अश्वपर आरूढ़ हो, वहाँ चले गये। वहां उन्हें देखते ही वह शकुनिका 33 Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust