________________ 2258 . श्रीशान्तिनाथ चरित्र। भी उन्हें अलङ्कार आदि दे, सम्मानित कर पूछा,- "हे पुत्र ! तुम्हें वह श्रेष्ठ पत्र कहाँसे मिला ? और तुम किन-किन स्थानोंमें घूम-फिरे ? " इसके उत्तरमें वत्सराजने अश्व और पर्यडकी प्राप्तिके सिवा और सभी बातें राजासे कह दी और घाँघरा देवीको देनेके लिये कह दिया। इसके . बाद वत्सराज वहाँ बड़े आनन्दसे रहने लगे। . एक दिन रानो कमलश्री, आयुष्यका क्षय हो जानेपर मृत्युको प्राप्त हो गयीं। उनके वियोगसे राजा बड़े ही शोकातुर हुए / इसपर वत्सराजने कहा,--" हे राजन् ! इस संसार में जितने पदार्थ हैं, सभी अनित्य है। इसलिये विधेकी पुरुषोंको ज़रा भी शोक नहीं करना चाहिये / कहा है, कि- .. . ....... "जललवचलम्मि विहवे, विज्जुलयाचंचलम्मि मणुयत्ते / .... .. धम्मम्मि जो विसीयइ, सो कापुरिसो न सप्पुरिसो॥१॥" . अर्थात्-- 'वैभव जलकी तरंगकी तरह चंचल है / मनुष्यका जीवन बिजलीका सा क्षण-भंगुर है / इसलिये जो मनुष्य धर्म करनेमें आलस्य करता है, वह कापुरुष है-सत्पुरुष नहीं।' " ऐसा विचार कर मनुष्यको धर्मरूपी औषधिका सेवन करना चाहिये। यह भौषध ऐसी है- 'सर्वज्ञभिषगादिष्टं, कोष्टशुद्धिविधायकम् / .. - शोकाविंशरुजः शान्त्यै, कार्य धौषधं युधैः // ' अर्थात्--'शोकावेश-रूपी रोगकी शान्तिके लिये बुद्धिमान मनुष्योंको सर्वज्ञरूपी वैद्यकी बतलायी हुई, अन्तःकरणकी शुद्धि करनेवाली धौषधिका सेवन करना चाहिये / ' .................... ... इस प्रकार वचन-रूपी अमृतसे राजाको सींचकर, घत्सराजने उनके / मनसे शोकरूपी महाव्याधिको दूर कर दिया। इससे राजाका शोक दूर हो गया और वे सावधान हो गये। ... . :: एक दिन वत्सराजने अपनी स्त्रियोंके साथ बैठे-बैठे विचार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarathek Trust