________________ 260. श्रीशान्तिनाथ चरित्र। लौट आकर राजासे कहा,-“हे स्वामी ! वत्सराजके घर तो रसोई की कुछ तैयारी ही नहीं है।" यह सुन, राजाके मनमें बड़ा विस्मय हुआ। उन्होंने एक दूसरे प्रतिहारीको बुला कर कहा,-"तुम जाकर देख आओ,', कि वत्सराजअथवा उसके किसी पड़ोसीके घर लोगोंके खिलाने-पिलाने. की तैयारी हो रही है या नहीं ? वह भी इधर-उधर चारों ओर देखभाल कर राजाके पास लौट आया और बोला,-"स्वामी ! जिसके घर पाँच-सात आदमियोंका न्यौता होता है, वह न जाने कितनी तैयारी करता है; पर वत्सराजके घर तो मैंने वैसी कुछ भी तैयारी नहीं देखी - वहाँ तो कोई बोलता-चालता भी नहीं।" यह सुन, राजाने विचार किया,-"वत्सराजने मुझे न्यौता दे रखा है, फिर ऐसी बात क्यों हो रही है ?" राजा यह सोच ही रहे थे, कि इतनेमें भोजनका समय हुआ देख, वत्सराजने वहाँ आकर उनसे भोजनके निमित्त पधारनेको कहा। तब राजाने कहा, "हे वत्सराज ! क्या तुम मेरे साथ हँसी करते हो? बिना रसोई-पानीका इन्तज़ाम कियेही मुझे बुलाने आये हो ?" . यह सुन, वत्सराजने कहा,-"स्वामी ! आप सब तरहसे मेरे पूज्य हैं, फिर मैं आपके साथ कैसे हँसी कर सकता हूँ ?" राजाने कहा,-"तुम्हारे घर अन्न-पानादिकका तो कुछ ठिकानाही नहीं है। वत्सराजने कहा,"देव.! आप इसकी फ़िक्र क्यों करते हैं, कि मेरे घर रसोई तैयार है या नहीं ? यह फ़िक्र तो मुझे करनी चाहिये / आपको तो कृपाकर पधारनेकी ज़रूरत है।" यह सुन, उत्साहित हो, राजा अपने सब परिवार-परिजनोंके साथ, वत्सराजके घर आये। वहाँ विशाल मनोहर मण्डप देख, राजाने सोचा, - "इसकी तो कुल बातें अचम्भेसे भरी रहती हैं। यह मनोहर मण्डप तो अभी तुरतका बनाया मालूम पड़ता है। इसके बाद यथा- / योग्य मनोहर आसन बिछाये गये, जिनपर वत्सराजके बतलाये अनुसार राजा आदि सब लोग बैठे। पाद-प्रक्षालन आदि क्रियाएँ की गयीं। इसके बाद वत्सराजके सेवकोंने रत्न, सुवर्ण और चाँदीके बड़े-बड़े थाल P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust