________________ पञ्चेम प्रस्ताव / : काट काट कर खाने लगी। इतनेमें मांसका एक टुकड़ा: वत्सराजके कन्धेपर आ पड़ा, इससे विस्मित होकर वत्सराजने सोचा,-हैं ! यह मांस कहाँसे आया ? " ऐसा विचार कर उन्होंने ऊपरकी ओर देखा, तो उस स्त्रीकी कुल हरकत उन्हें नज़र आयी / बस, उन्होंने उसे नीचे गिरा, खग खींच, क्रोधके साथ कहा,- "अरी निर्दयी स्त्री! तू यह क्या कर रही है ? " घत्सराजके यह पूछते ही वह स्त्री उड़कर आसमानमें चली गयी / उस समय वत्सराजने उसकी ओढ़नी पकड़ ली थी; पर वह दुष्टा अपनी ओढ़नी छोड़कर ही भाग गयी। . .. इसी समय किसी श्रोताने घनरथ जिनेश्वरसे पूछा,- "प्रभो! यह स्त्री कौन थी ? और ऐसा कुकर्म क्यों कर रही थी ?" भगवान्ने कहा,"वह पापिनी देवता थी और पुरुषोंको छलनेके ही लिये ऐसा कुकर्म करती थी। " किसीने फिर पूछा,- "स्वामी! कहीं देवता भी मांस खाते हैं ?" स्वामीने कहा, -- "वह खाती नहीं थी-महज़ क्रीड़ा कर रही थी!". ... . . ..... .. इधर वत्सराज उसकी ओढ़नी लिये हुए घर आये और सो रहे / थोड़ी देर में सवेरा हो गया और वे उस वस्त्रको लिये हुए राजाके पास आ, उन्हें प्रणाम कर उचित आसनपर बैठ रहे / राजाने मौका पाकर उनसे रातकी बात पूछी। वत्सराजने रातका सारा किस्सा उनसे कह सुनाया और उस देवताकी ओढ़नी उन्हें दे दी। राजाको वह रस्नजटित बहुमूल्य वस्त्र देखकर बड़ा विस्मय हुआ और उन्होंने वत्सराज की कुल बातोंको सच समझा / इसके बाद राजाने यह सुन्दर ओढ़नी अपने पास बैठी हुई रानी कमलश्रीको दे दी। सनीने उसी समय राजाका प्रेमोपहार समझकर उसे ओढ़ लिया / उससे पहलेकी पहनी हुई अगियाकी शोभा फीकी पड़ गयी / यह देख, उन्होंने यह विचार कर, कि इसी पीढ़नीके मुकाबलेकी अगिया भी होनी चाहिये, राजासे कहा,स्वामी! यदि इसी ओढ़नीके मुकाबलेकी अंगिया भी मिले, तो ठीक हो।" यह सुन, राजाने वस्सराजसे कहा, "प्यारे वत्सराज! तुम्हारी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust