________________ 244 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / .mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm..www.wwwwwn mwww.marr........ से अंकुशके वशमें रहता है / तो इससे क्या अंकुश हाथीके बराबर होगया ? जलता हुअा छोटासा चिराग घनी अँधियारीको दूरकर देता है। तो क्या. दीपके बराबर ही अन्धकार होता है ? वज्रके मारसे बडे- - बड़े पर्वत भी गिर पड़ते हैं। तो क्या पर्वत वज्रकीही तरह छोटे-छोटे होते हैं ? नहीं—ऐसा नहीं है / जिसमें तेज विराजमान होता है वही बलवान होता है / केवल मोटे-ताजे होनेसे ही उसके बलका भरोसा नहीं करना चाहिये / ' __. 'सिंहः शिशुरपि निपतति, मदमलिनकपोलभित्तिषु गजेषु / . * प्रकृप्तिरियं सत्त्ववसां, न खस्नु वयस्तेजसो हेतुः / / 1 // '... ... अर्थात 'सिंह बालक होनेपर भी, कपोल-प्रदेशसे मद चुंबानेवाले हाथीपर ही पड़ता है। इससे सिद्ध होता है, कि पराक्रमी जीवोंकी ऐसी प्रकृति ही होती है, इसलिए अवस्था तेजका कारण नहीं है।' ___ “अतएव हे मुग्धे! तुम मुझे बालक समझकर मेरी अश्रद्धा न करो। सुम्हें जो दुःख हो, वह मुझसे कहो / मुझसे जहाँ तक बन पड़ेगा, वहाँ सक मैं तुम्हारा दुःख दूर करनेकी चेष्टा करूंगा।" ...यह सुन, वह स्त्री ज़रा मुस्कराकर बोली, "हे पुरुष ! मेरे दुःखका कारण-सुनो। मैं इसी नगरके रहनेवाले एक अच्छे आदमीकी स्त्री हूँ। मेरे उस युवा पतिको यहाँके राजाने निरपराध सूलीपर चढ़ा दिया है / अभीतकवे सूलीपर लटके हुए भी जी रहे हैं और घेवर खाने. की बड़ी इच्छा प्रकट कर रहे हैं / इसलिये मैं उनके घास्ते घरसे घेवर बना लायी हूँ पर सूली इतनी ऊँची है, कि मैं वहाँतक पहुँच नहीं पाती। इसीलिये मैं अपने पतिको याद कर-करके रो रही है, क्योंकि लियोंका बल तो रोमाही है। " - यह सुन, वत्सराजने कहा, "भद्रे ! तुम मेरे कन्धेपर चढ़कर अपनी इच्छा पूरी कर लो।” यह सुनतेही वह दुष्ट अभिप्रायवाली स्त्री, वत्सराजके कन्धे पर चढ़कर स्लीपर चढ़े हुए मनुष्यकी देहसे. मांस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust