________________ पञ्चम प्रस्ताव / 243 . 'जो. नवि दुक्खं पत्तो, जो नवि दुक्खस्स निग्गहसमत्थो। .. जो नवि दुहिए दुहिरो, तो कीस कहिज्जए दुक्खम् // 1 // ' .. अर्थात्-- जिस मनुष्यको किसी समय दुःख नहीं हुआ हो, जो दुःख छुड़ाने में भी समर्थ न हो, तथा जो पराये दुःखसे दुःखित होने : वाला न हो, उससे अपना दुःख क्यों कहना ?' . . . यह सुन, वत्सराजने कहा, "हे भद्रे! सुनो- . . . . 'अहमवि दुक्ख पत्तो, अहमवि दुक्खस्स निग्गहसमत्थो। अहमवि दुहिए दुहिओ, ता अम्ह कहिज्जए दुक्खम् // 1 // ' अर्थात्- 'मैं भी दखिया हूँ और दुःख छुड़ाने को भी समर्थ हूँ। मैं पराये दुःखसे दुखी भी होता हूँ; इसलिये तुम मुझसे अपना दुःख अवश्य कहो।' यह सुन वह स्त्री बोली,-"तुम अभी बालक हो, इसलिये मैं तुम्हें अपना दुःख कैसे सुनाऊँ ?. कहा है, कि- . . - 'दुक्ख तास कहिज्जइ, जो होइ दुक्खभंजणसमत्यो। - असमत्थाण कहिजइ, सो दुक्ख अप्पणो कहइ // 1 // ' .. .. .... * . अर्थात- 'जो मनुष्य दुःख-भंजन करने में समर्थ हो, उसीसे अपना दुःख कहना चाहिये / असमर्थों से दुःख कहना अपने आपसे कहनेके' समान ही निष्फल है।... ... . तुम अभी बालक हो, इसलिये मेरा दुःख कैसे छुड़ा सकते हो इसीसे मैं तुमसे अपना दुःख नहीं कहा चाहती।" वत्सराजने कहा, हस्ती स्थूलतनुः स चांकुशवशः किं हस्तिमात्रोऽकुशो! - दीप प्रज्वलिते प्रणश्यति तमः किं दीपमात्र तमः? .:. वज्रेणाभिहताः पतन्ति गिरयः, किं वज्रमात्रो गिरिः ? __ . . . . . तेजो यस्य विराजते स बलवान, स्थूलेषु कः प्रत्ययः ? * ...... अर्थात् -'हाथीकी देह बहुत बड़ी होती है। पर वह भी छोटे P.P. Ac. Gurratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust