________________ पञ्चम प्रस्ताव। 246 इसी प्रकार बातें कर रहे थे, कि इतनेमें एक श्रेष्ठ अलङ्कारोंसे सुशोभित पुरुष वहाँ आया। उसके चेहरेका रंग उड़ा हुआ था। यह देख, - वत्सराजने सेठसे पूछा,-"सेठजी ! इस आदमीका चेहरा इतना उदास / क्यों दिखाई देता है ?" यह सुन, सेठने लम्बी साँस लेकर कहा, "हे सुन्दर ! अत्यन्त गुप्त रखने लायक हो, तो भी यह वृत्तान्त मैं तुमसे कह सुनाता हूँ। मेरे एक पुत्री है। उसके पास हर रातको एक पहरेदार रहता है। वह अवश्य ही उग्र भूतदोषसे उसी रातको मारा जाता है / आज इसी बेचारेके पहरेकी बारी है, इसीसे इसका चेहरा उदास हो रहा है ; क्योंकि मृत्युसे बढ़कर भयकी बात दूसरी नहीं है।" यह सुन, वत्सराजने कहा, “सेठजी ! आज इस आदमीको . सानन्द घर रहने दीजिये। आज मैं ही आपकी पुत्री पर पहरा दूंगा।" यह सुन, सेठने कहा,-“हे वत्स ! तुम आज अतिथिकी तरह मेरे घर आये हो। अभीतक तुमने मेरे घर भोजन भी नहीं किया। फिर व्यर्थही मृत्युको आलिंगन करने क्यों जा रहे हो ?" सेठकी यह बात सुन, वत्सराजने कहा,---"सेठजी! मुझे परोपकार करनेकी लगनसी है। इसलिये मैं तो आज यह काम ज़रूर करूँगा, क्योंकि मनुष्यजन्मका सार परोपकार ही है। शास्त्र में भी कहा है,- . "धन्यास्ते पशवो नून-मुपकुर्वन्ति ये त्वचा / परोपकारहीनस्य, धिग्मनुष्यस्य जीवितम् // 1 // क्षेत्र रक्षति चञ्चा, गेहं लोलापटी कणान् रक्षा। दन्तात्ततृणं प्राणान्, नरेण किं निरुपकारेण // 2 // " अर्थात्- "वे पशु धन्य हैं, जो अपने शरीरके चमडेसे परोपकार करते हैं; पर जो मनुष्य परोपकार नहीं करते हैं, उनके जीवनको धिक्कार है। चञ्चा-पुरुष (नकली आदमी ) खेतकी रक्षा करता है, ध्वजाका. चंचल वस्त्र घरकी रक्षा करता है, राख कणोंकी रक्षा करती है और दाँतमें दबाया हुआ तृण शत्रुओंके प्राणोंकी रक्षा करता है। पर जो मनुष्य परोपकार नहीं करता, वह भला किस कामका !' P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust