________________ RArno पञ्चम प्रस्ताव। पाती उस मन्त्रीने सब लोगोंको वत्सराजकी ही तरफदारी करते देख कर अपने मनमें विचार किया,-"यह वत्सराज उन बड़ी होनेपर अवश्य ही इस राज्य पर अधिकार जमा लेगा; इसलिये इसे किसी तरह यहाँसे दूर करना चाहिये / नीतिमें कहा हुआ है, कि 'तदस्मिन्नहित स्वस्य, नोपेक्षा युज्यते खलु / कोमलोऽपि रिपुश्छेद्यो, व्याधिवद् बुद्धिशालिना // 1 / / ' अर्थात् --- ''अपने शत्रुकी कभी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये / बुद्धिमान् मनुष्योंको चाहिये, कि छोटीसी व्याधिकी तरह अपने नन्हेसे शत्रुको भी अवश्यही मार डाले / " ऐसा विचार कर, उस मन्त्रीने अपना अभिप्राय राजापर प्रकट किया। देवराजने उससे पूछा,- “मन्त्री! इसके लिये कौनसा उपाय करना चाहिये ?" मन्त्रीने कहा, "हे राजन् ! वत्सराजका यहाँ रहना आपके हकमें अच्छा नहीं है, इसलिये इसे किसी-न-किसी उपायसे इस नगरसे निकाल बाहर करना चाहिये ।क्योंकि यद्यपि वह तुम्हारा छोटा भाई है, तथापि तुम्हारी बुराई करनेवाला है। " मन्त्रीकी यह सलाह सुन, एक दिन देवराज अपने छोटे भाईको बुलाकर कहा,-"तुम मेरा / देश छोड़कर कहीं और चले जाओ।" बड़े भाईकी यह आशा उसने झटपट स्वीकार कर ली और अपनी मातासे आकर यह हाल कहा / वह उसके मुंहसे यह सब हाल सुन, बड़ी दुःखित हुई और आंसू गिराने लगी। अपनी माताको दुःखित होते देख, वत्सराजने कहा,"हे माता! तुम क्यों उदास होती हो ? मेरे बड़े भाई देवराज बड़े वि नयी हैं। मैं उनके हुक्मसे यह देश छोड़कर दूसरी जगह जाता है। है इसलिये तुम रोजी-खुशीसे मुझे जानेकी आज्ञा दे दो।" यह सुन, देवीने कहा,--"बेटा! यदि तू दूसरे देशमें जायेगा, तो मैं भी अपनी बहनके साथ तेरे साथही चलूगी / " यह सुन, क्त्स राजने कहा,-"माता ! तुम्हें तो यहीं रहना चाहिये. स्त्रियोंके लिये परदेश P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust