________________ 234 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / ही साहसो थे, इसलिये उन्होंने उस चन्दनके पेड़की एक डाल काट गिरायी। इसके बाद उसके छोटे-छोटे टुकड़े कर, काँवरमें भरकर, वे घरको लिये जाते थे, कि इसी समय नगरके पास पहुँचते-न-पहुँचते रास्ते में ही सूर्यास्त हो गया और नगरका फाटक बन्द हो गया। उस नगरमें शाकिनीका बड़ा उपद्रव हुआ करता था। इसी डरसे सूर्यास्तके ही समय शहर-पनाहके फाटक बन्द हो जाते थे और फिर सूर्योदय होने पर ही खुलते थे। वहीं पड़े-पड़े वत्सराजने विचार किया,– “यदि मैं नगरके बाहर ही किसी घरमें रातभर रह जाऊँ, तो इस चन्दनकी / / गन्ध चारों तरफ़ फैल जायेगी; इसलिये अच्छा हो, यदि मैं फिर उसी जंगलमें लौट जाऊँ और रात वहीं बिता दूं।” फिर सोचा, - “आज बड़ी कड़ाकेकी सरदी है, इसलिये अगर ठण्ड लगी, तो फिर मैं क्या करूँगा?" यही सोचते-सोचते उन्हें उस मन्दिरकी याद आ गयी और उन्होंने सोचा, कि उसी मन्दिरमें रह जाऊँगा। ऐसा विचारकर वह बहुत जल्दीजल्दी वहीं पहुंचे और एक बड़ेसे वृक्षपर ऊँचे चढ़कर चन्दनका वह काँवर / बांधकर लटका दिया। इसके बाद वे वीर-शिरोमणि स्वयं उस मन्दिरमें चले गये और उसका दरवाज़ा बन्दकर, पासही कुल्हाड़ी रख, एक कोनेमें बेफ़िक्री के साथ सो रहे। इतनेमें वेताढ्य-पर्वतपर रहनेवाली विद्याधरियोंका झुण्ड, विमानसे उतरकर उसी यक्षमन्दिरमें आया और उत्तम शृङ्गार किथे, यक्षकी भक्तिके वशमें हो, वे नाचने-गानेको तैयार हो गयीं / इसी समय मन्दिरके बाहर वाले मण्डपमें बैठकर वे परस्पर इस प्रकार बातें करने लगीं,-"चित्रलेखा! तू बीन बजा, मानसिका ! तू ताल दे। वेगवती ! तू बजानेके लिये ढोलको तैयार कर ले। पधनकेतना! तू मृदङ्ग तैयार कर ले। गन्धर्विका ! तू गीत गा / हम सब नृत्य करेंगी। बस आओ, हम आज इस मनोहर स्थानमें जी भरकर मौज करें।” इस प्रकार बातें करती हुई, वे विद्याधरियाँ, मौजके साथ हसती और आनन्द मनाती हुई, क्रीड़ा करने लगी / इस प्रकार बड़ी देरतक मौज-बहार करनेके अनन्तर उन्होंने अपने पसीनेसे भीगे हुए P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust